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डॉक्टर सुमंत पोद्दार की डायरी

डॉक्टर सुमंत पोद्दार

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doctor sumant poddar ki dir

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पुस्तक के भाग

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कई किरदार, रोज़ हम जीते हैं

19 सितम्बर 2019
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कुछ जिस्मानी तकल्लुफ़ से....

23 सितम्बर 2019
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नज़र कुछ कह ना सकी,...

26 सितम्बर 2019
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नज़र कुछ कह ना सकी,...नज़र कुछ कह ना सकी, सितारों के बीच,चाँद जो अपने मुखड़े को, ली थी सींच,एक झलक, तो मिल ही गयी मुझे दूर,मानो जैसे, बन गयी, मेरे आँखों की नूर,कुछ गरम साँसे, छू कर निकल गयी पास,लगा ऐसे, तुम मेरी हो कितनी ख़ास,मूड के देखा, बैठी थी तुम, लिए आँखों में अंग्रा

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हे माँ, तुझे समर्पण ...

1 अक्टूबर 2019
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हो जाएगा मेरा अंत....

20 नवम्बर 2019
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क़ुरबानी तो लगती है रोज़ अरमानो की,...

29 मई 2020
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क़ुरबानी तो लगती है रोज़ अरमानो की,...क़ुरबानी तो लगती है रोज़ अरमानो की,सफ़र का क़ाफ़िला, कम या ज़्यादा,एहसासों का भी होता है बलिदान,सब काल्पनिक, रहती नहीं कोई मर्यादा,उसी दौर से, गुज़र रहें हैं सब हम,गुनाहों का कारवाँ, होता है मुकर्रम,रंग भी यहाँ, बेरंग भी यहाँ,चुनना है हमें, किसे भरें हम, कब और क

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राधा बनकर हो जाने दो तेरी. ..

13 जुलाई 2020
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राधा बनकर हो जाने दो तेरी. .. रोज़ रात, एक दस्तक आती है,शायद, वह कुछ कहना चाहती है,उठकर, देख पाता हूँ, साफ़ एक चेहरा,पता नहीं कैसे, चाहे, जितना भी हो अँधेरा,किसी से, कह भी नहीं सकता, करेगा नहीं कोई विश्वास,अंतर्मन की महिमा का, सिर्फ़ होता है एहसास,डर भी लगा, पहली बार जब आय

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