नज़र कुछ कह ना सकी,...
नज़र कुछ कह ना सकी, सितारों के बीच,
चाँद जो अपने मुखड़े को, ली थी सींच,
एक झलक, तो मिल ही गयी मुझे दूर,
मानो जैसे, बन गयी, मेरे आँखों की नूर,
कुछ गरम साँसे, छू कर निकल गयी पास,
लगा ऐसे, तुम मेरी हो कितनी ख़ास,
मूड के देखा, बैठी थी तुम, लिए आँखों में अंग्राइ,
मुझे देख, नज़रों को समेटा, मेरी आँखें मुस्कुराई,
हम रो भी लेते है, सजा कर इशारों की महफ़िल,
हंस भी लेते हैं, बहलाकर अपने दिल,
होंठ, कह देते हैं, सब कुछ, कुछ ना कह कर,
और आँसू बह जाते हैं, नमक को पीकर,
समय आगे क्या दिखाएगा, क्या हमें है पता,
आज माफ़ कर दो मुझे, मैंने अगर, की कोई खता,
मानता हूँ तुम्हें, सबसे आगे, रख ज़िंदगी,
पहचानता हूँ तुम्हें, सबसे आगे, रख ज़िंदगी,
कुछ अनमोल पल, जो बिताए हम कभी,
मोती बनकर, आसमान से गिर रहे हैं अभी,
आओ हम बटोर लें, कुछ पुरानी यादें,
लिख लें, कुछ पन्ने, समेट कर सारी बातें,
जब आँखें बंद हो जाए मेरी,
इन पन्नो में, रहेगी ज़िंदगी तेरी,
हो सके तो, सम्भाल कर रखना, इनको आँखों तले,
मेरी रूह, शायद तुझसे जवाब माँग ले,
नज़र कुछ कह ना सकी, सितारों के बीच,
चाँद जो अपने मुखड़े को, ली थी सींच,...
डॉक्टर सुमंत पोद्दार