लड़के रोया नहीं करते,
कितने भी आँशु आये,
पर दफन किये दिल के अंदर,
जज्बातों का इक लिए भंवर,
उठते गिरते लहरों की तरह,
सबकी इक्षाओं को सहते | साहब
लड़के रोया नहीं करते ||
कभी पत्नी की आशाओं पर,
कभी माँ की पस्त बीमारी पर,
कभी पापा के अरमानों का,
कभी खुद की बनी लाचारी पर,
हैं दफन किये सब दुख अपना,
दिल ही दिल में घुटते रहते | साहब
लड़के रोया नहीं करते ||
कभी ऑफिस के फैले कामों से,
कभी साहब के मिलते तानों से,
जब बढ़ जाता दिल का गुबार,
होने लगता है दुख अपार,
सारे दुख दिल में दफन किये ,
इस दुनिया से चलते बनते | साहब
लड़के रोया नहीं करते ||
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
रचनाकार
विवेक कुमार शुक्ल "विश्वास"