आग लगती है जब ज़माने में
देर लगती है क्यों बुझाने में
आदमी इतनी दूर जा बैठा
उम्र बीती है क़रीब लाने में
अपना था गाँव अपने थे सभी
देर फिर क्यों लगी पहचान ने में
चैन एक पल भी ना मिला यारों
उम्र बीती है आने जाने में
उम्र की झुर्रियों को वक़्त नहीं लगता
वक़्त लगता है मुस्कुराने में
आग लगती है जब ज़माने में
देर लगती है क्यों बुझाने में
रेखा रानी जायसवाल