वो लम्हे कहाँ फ़ुरसत के, वो पल कहाँ राहत के !
अब इंतेज़ार है और ख़्वाहिश है, वो निशान कहाँ हसरत के !!
कभी सबको साथ लेकर चलने की आदत थी दोस्तो !
अब ख़बर नहीं कहाँ है, वो फसाने लड़कपन के !!
कभी चाहत पे दुनिया का हर जर्रा जर्रा कायम था !
मुद्दत हुई खोजते, वो गुलिस्ताँ कहाँ चाहत के !!
कभी दुश्मन भी हमारा, दोस्ती को तरसता था !
अब अपना भी नहीं कोई, वो अफ़साने कहाँ किस्मत के !!
नज़र फेर लेना बेशक दीपक से तुम गम नहीं !
अपनेपन का कायल है, उसकी कुदरत को समझ के !!