जलते हुए शोलों से दोस्ती कर ली !
खुद खाक होने की, साज़िश कर ली !!
इन सर्द बर्फ़ीली हवाओं में, वो बात कहाँ !
एक धूप की ख्वाहिश में, रोशनी कर ली !!
तेरे दामन में, या मेरे आशियाने में !
एक बूँद की चाहत में, बारिश कर ली !!
वो तो नहीं हुआ जो, दिल की आरज़ू थी !
हर शाम तेरी आहट पे, तसल्ली कर ली !!
हर बात से नाराज़, और खफा हुए !
हर बार समझने की, कोशिश कर ली !!
ना समझ पाएँगे लोग, इस बात का मतलब !
यह सोच के हर बार, राहत कर ली !!
कुछ माँगने की आदत, कभी थी नहीं हमारी !
तेरी खुशी समझकर, इबादत कर ली !!
- कुँवर दीपक रावत