वो क़लम नहीं हो सकती है
जो बिकती हो बाज़ारों में !
क़लम वही है जिसकी स्याही,
ना फीकी पड़े नादिया की धारों में !!
क़लम वो है जो बनती है,
संघर्ष के तूफान से !
लिखती है तो बस सिर्फ़
मानवता क़ी ज़ुबान से !!
क़लम चाकू नहीं खंज़र नहीं,
क़लम तलवार है !
सत्यमेव ज्यते ही
इसका आधार है !!
समाज़ के हर वर्ग तक
इसका विस्तार है !
ये ना किसी की मोहताज,
ना क़र्ज़दार है !!
बेखौफ़ आँधियों और
तूफ़ान सा वार करती है !
प्रव्रति से ज़ुल्म पर
सदा प्रहार करती है !
साहित्य का भंडार,
इसका चमत्कार है !
माँ सरस्वती का दिया,
अद्भुत उपहार है !!
देशभक्ति सच्चाई भरा
इसका हर व्यवहार है !
समाज का उत्थान
इसका अधिकार है !!
कभी कल्पना से कभी
सच से रिश्ता निभाती है !
झूठ को कभी ना
ये सच बनाती है !!
- कुँवर दीपक रावत