कहते हैं कुछ लोग की,
ये अंदाज़ शायराना है !
कहते हैं हम की,
अब ठीक से पहचाना है !!
दिल की तन्हाई का,
अब तो ये ही अफ़साना है !
कहते हो फिर क्यूँ के,
ये तो बस बहाना है !!
फिर वही दिन, वही रोशनी,
वही आसमा है !
जाने क्यूँ फिर भी यहाँ,
कुछ तो विराना है !!
वो मोहब्बत कहाँ की,
तबीयत जिससे हसीन हो !
अभी तो तुमको भी हमने,
चार दिन से जाना है !!
जिंदगी तुम कभी,
फुरसत में मिलना मुझसे !
अभी तो हर लम्हा मुझे
, कोई फ़र्ज़ निभाना है !!
दोस्ती तेरे बस का रोग नहीं,
ए दिले दीपक नादान !
कहते है सब के भलाई का
अब कहाँ जमाना है !!
कुँवर दीपक रावत