स्कूल की ग्रे पेन्ट और घर की पुरानी पीली टी षर्ट पहने 8 साल का मासूम समीर , दरवाजे के किनारे छुपा सा अन्दर चल रही पार्टी को देख रहा हैे। बपचन से वह हर क्रिसमस की षाम डाॅली आन्टी के यहाॅ आता रहा है लेकिन आज न जाने क्यों उसें अन्दर जाने में अटपटा लग रहा है ,षायद इसी को दुनियादारी का समझ कहते हैं जो हमें कपडेां और जूतों से इन्सानों में भेद करना सिखाती है। अपने गन्दे कपडो की वजह से समीर में अन्दर जाने की हिम्मत नही है। वह दरवाजे पर ही खडा मेहमानों की भीड और खाने की चीजों से सजी मेज को ताक रहा था कि पीछे से डाॅली आन्टी ने आकर चैंका दिया। “है समीर...अकेला आया है?” करीब 48 साल की एक औरत कमर में हाथ रख्ेा उसे घूर सी रही है। “जी।” समीर हडबडा गया। डाॅली आन्टी ने झुककर उसके बिखरे बाल ठीक किये और उसे अन्दर लाने लगीं।