“अरे उसे निकालो मत! इसमें सेन्टा मेरे लिए गिफ्ट रख कर जायेगें स्टूपिड!”
“गिफ्ट? इसमें?” समीर हैरान है।
“हाॅ...से न्टाॅक्लॅाज आज की रात आकर बच्चों के लिए गिफ्टस छोड कर जाते हैं इसमें। तुम्हें नही पता?” समीर ने ना में सिर हिला दिया।
“से टा चाॅद में रहते हैं और क्रिस्मस की रात आकर बच्चांे को तोहफे दे कर जाते हैं।”
“कैसे तोहफे?”
“अरे स्टूपिड, जो कुछ भी हम उनसे माॅगें वह सब देते हैं। बस , हमें साल भर अच्छा बच्चा बन कर रहना पडता है।” बच्चे ने बडी गम्भीरता से कहा
“तो तुम उनसे माॅगते कैसे हो? मै भी माॅग सकता हूॅ?”
“अमम् हाॅ, तुम एक लैटर लिखकर अपने मम्मी पापा को दे देना , वह उन तक पहुॅचा देगें और फिर तुम्हें अगले क्रिस्मस पर तुम्हारा गिफ्ट मिल जायेगा।” बच्चा अपनी बात पूरी कर चला गया और साथ ही समीर के चेहरे की खुषी भीं क्योंकिं उसके तो माॅ बाप ही नही हैं। उसने से न्टाक्लाॅज का नाम आज पहली बार सुना है और बस नाम से अन्दाजा लगा लिया कि ये कोई फरिषते जैसी चीज होती होगी जो अपनी जादू की छडी घुमाकर बच्चों की इच्छायें पूरी करता होगा।
समीर को यहाॅ आये काफी देर हो चुकी है और अब रात भी बढने लगी है ,उसे लौटना होगा। अफसोस इस बात का कि उस े अब तक उस केक का एक टुकडा भी नही मिला जिसे देखकर उसके मुॅह में पानी आ रहा है। डाॅली आॅन्टी अपने मेहमानेा के बीच फॅसी हैं। समीर चुपचाप अपना मन मारे उस हाॅल से बाहर निकल आया। रंग बिंरगीं लाईट स े झिलमिलाते पेडों के बीच स े निकलकर उसने गेट पर हाथ रखा ही था कि सामने एक गाडी आकर रूकी। ये डाॅली आॅन्टी के पति है लेकिन डाॅली आन्टी की तरह ये एग्लोइन्डियन नही है ,इनकी परवरिष भारत में ही हुई है।ं
“हैल्लो क्यूटि!” उन्होने समीर के बाल बिखेर दिये।
“हैप्पी क्रिस्मस अंकल।” समीर जाने लगा।
“एक मिनट। इतनी जल्दि क्यों जा रहा है? पार्टी तो अभी हुई हैं”
“नही ,घर पर आन्टी डाॅटें गीं।”
“वह तेरी मम्मी है समीर....उन्हें मम्मी बुलाया करो।” समीर ने चुपचाप सिर झुका लिया। इस बारे में वह किसी केा कुछ समझा नही सकता। अंकल ने उसका उतरा मुॅह देखा और-
“तो तूने कुछ खाया?” समीर का झुका हुआ चेहरा दो बार हाॅ में हिला लेकिन वह इतना छोटा है किसी उम्रदराज आदमी को बेवकूफ नही बना सका। अंकल ने उसके गाल पर हाथ फेरा।
“तू यहीं रूक! मै अभी आता हूॅ।” उसे लाॅन के किनारे खडा कर अकंल अन्दर चले गये और कुछ दो मिनट एक डिस्पोजल प्लेट में खाने की चीजों के साथ वापस लौटे।
“तू ऐसे ही जा रहा था?”
“हाॅ , देर होने पर पापा मारते हैं।” समीर ने केक से मॅुह भर लिया उस रात न जाने अंकल के दिमाग में क्या था कि अपने मेहमानो को छोडकर समीर के साथ काफी देर तक गार्डन में बैठे रहे। बातो बातों में समीर ने उनस े सेन्टाक्ॅलाज के बारे में पूछा। वह क्या होता है , कैसा हेाता है?
“सेन्टा क्लाॅज पुराने जमाने का एक रहीस आदमी था समीर , जो काफी नर्मदिल था और गरीबों की मदद करता था। लेकिन उसने कभी लोगों को अपनी पहचान नही दी। वह रातों को चुपके से लोगों के घरों में सोने की छड रख कर चला जाता था। उसे ही सब सेन्टाक्लाज कहते हैं।”
“तो वह आज भी है?”
“अममम्.....हाॅ हैं।“ अंकल को यही जवाब देना सही लगा। समीर ने कुछ सोचा और रूकते रूकते भी उनसे सवाल कर दिया।
“अंकल ,जिन बच्चों के माॅ पापा ना हो ,वह भी उन्हें अपनी चिटठी दे सकते हैं?”
“हाॅ समीर।”
“कैसे? कहाॅ?”
“वह अपनी चिटठी चर्च में दे सकते हैं।”
उसके बाद समीर ने कुछ नही पूछा। केक से सना मुॅह साफ करके खुष होता हुआ तेजी से अपने घर की तरफ भाग गया। अगले ही दिन उसने सेन्टा को एक चिटठी लिख डाली और दो दिन बाद स्कूल जाते हुए उसे पास के चर्च के पादरी को पकडा आया। उस दिन के बाद समीर के छोटे से दिल में एक नयी भावना ने जगह ले ली। एक ऐसी भावना जो उसे कई सपने दिखाती थी ,जो उसे यकीन दिलाती थी कि उसकी इच्छा जरूर पूरी होगी ,जिसे हम उम्मीद कहते हैं। वह बहुत बेसब्री से अगले क्रिस्मस का इन्तजार कर रहा था, लेकिन वह नही जानता था कि क्रिस्मस से पहले ही उसे अपने खत का जवाब मिल जायेगा। ठीक दो महीने बाद जब एक देापहर समीर ,लाॅन में सूखे हुए कपडे तार से खंीच रहा था तो पेास्टमैन एक चिटठी आॅगन में फें कगया। ये पूरा खत सिर्फ अंग्रजी में लिखा है और सिटीबोर्ड स्कूल में कभी कभार दर्षन देने वाला समीर सिर्फ अपना नाम पढ सका। अपनी मालकिन या मुॅह बोली माॅ के पा जाकर उसने वह खत दिखाया तो पता चला कि ये खत उसी के लिए है।