लैटर टू सेन्टा
बारिश की छमछम रूक जाने तक समीर अपनी जगह पर ही खडा रह गया। हाथ में पकडा काॅफी का कप बाहर के मौसम की तरह ही ठण्डा हो चला है और खिडकी से बाहर देखती उसकी गुम सी आॅखों में भी सर्द नमी आ गयी है। जॅान्सन के बारे में उसे कुछ ऐसा सुनने को मिलेगा ,उसे उम्मीद नही थी। बचपन से उसकी जिन्दगी का हीरों जिसे मिलने के लिए वह पिछले 18 सालों से परेषान रहा ,उसे मिलने का वक्त आया भी तो तब , जब वह रहा ही नही।
“सरॅ , टैक्सी इज रेडी।” ड्राईवर ने आकर उसे चेताया
“यू जस्ट वेट आउटसाईड। आई एम कमिंग।”
समीर ने कोट के बटन लगाते हुए काॅफी का कप मेज पर रखा और मार्गरिटा के लौटने का इन्तजार करने लगा। वह अपने कमरे में अपने सामान की पैकिंग कर रही है उसे भी दो दिन में इस छोटे से घर को खाली करना है। इस बिखरे कमरे में खडे खडे समीर की नजरें घूम फिर कर जाॅन्सन की तस्वीर पर जा टिकती हैं जो उसकी कल्पना के हीरो जैसा बिल्कुल नही लेकिन फिर भी नजरेंा में एक सम्मान पैदा कर रहा है। उसके लिए जाॅन्सन हमेषा से ही कोई बेहद रहीस इन्सान था। पतले सफेद चेहरे पर भूरी मूॅछें ,हल्के भूरे बाल और नीली आॅखें ,इन सब की कल्पना तो समीर ने हमेषा से ही की थी लेकिन वह एक माली होगा ,ये उसके लिए सबसे चैंका देने वाली बात थी। जिस इन्सान की बदौलत समीर आज एक मल्टीनेषनल कम्पनी का सी ई ओ है ,वह खुद पेैाधों की देखभाल करके जिन्दगी काट रहा था? जाॅन्सन की उस मुस्कुराती तस्वीर के सामने खडा समीर न जाने कब 18 साल पीछे , क्रिसमस की उस षाम में पहुॅच गया जब उसने पहली बार किसी सेन्टाक्लॅाज के बारे में सुना था।
स्कूल की ग्रे पेन्ट और घर की पुरानी पीली टी षर्ट पहने 8 साल का मासूम समीर , दरवाजे के किनारे छुपा सा अन्दर चल रही पार्टी को देख रहा हैे। बपचन से वह हर क्रिसमस की षाम डाॅली आन्टी के यहाॅ आता रहा है लेकिन आज न जाने क्यों उसें अन्दर जाने में अटपटा लग रहा है ,षायद इसी को दुनियादारी का समझ कहते हैं जो हमें कपडेां और जूतों से इन्सानों में भेद करना सिखाती है। अपने गन्दे कपडो की वजह से समीर में अन्दर जाने की हिम्मत नही है। वह दरवाजे पर ही खडा मेहमानों की भीड और खाने की चीजों से सजी मेज को ताक रहा था कि पीछे से डाॅली आन्टी ने आकर चैंका दिया।
“है समीर...अकेला आया है?” करीब 48 साल की एक औरत कमर में हाथ रख्ेा उसे घूर सी रही है।
“जी।” समीर हडबडा गया। डाॅली आन्टी ने झुककर उसके बिखरे बाल ठीक किये और उसे अन्दर लाने लगीं।
“आॅन्टी मै बस आपको मिलने आया था...हैप्पी क्रिस्मस।” समीर ने एक गुलाब का फूल उनकी तरफ बढा दिया जो वह खरीद कर नही लाया, बल्कि पिछले दो घण्टे एक फूल वाले का हाथ बॅटाकर अपनी ध्याडी के तौर पर लिया है। आन्टी ने हॅसकर वह फूल उसके हाथ से लिया और फिर उसे जबरदस्ती अन्दर खींच लायी। डाॅली आॅन्टी के अपने बच्चे तो आज उनके साथ क्रिस्मस मनाने नही आये लेकिन समीर जैसा अनाथ ,जिसे डाॅली जी के पडोसी तीन साल पहले किसी अनाथालय से ले आये थे और जिसकी हैसीयत उस घर में किसी नौकर से ज्यादा नही है ,इस दिन अपनी जिम्मेदारी पूरी करने जरूर आता है। डाॅली आन्टी ने समीर को हाॅल में बच्चों की भीड के साथ छोड दिया। पूरा कमरा किसी खुषबू से महक रहा है। संगीत पर नाचते कूदते बच्चे बार बार जाकर मेज से कुछ खाने के लिए उठा लाते है लेकिन समीर की हिम्मत नही है कि वह उस तरफ जा भी सके। वह बस अपने गन्दे कपडों में खुद को सिमटाये उस खूबसूरत क्रिस्मस ट्री के चक्कर लगा रहा है जिसे सजाने की तम्मना उसे कई कई दिन सोने नही देती और जो आज तक जो कभी पूरी भी न हो सकी। उस हरे भरे पेड पर लगे हुए रूई के गोले , रंग बिंरगें रिबन ,गुब्बारे , चमकीले फीते ,छेाटी छोटी घन्टियाॅ और एक बडा सा सितारा, ये सब उसे बहुत लुभाते है। आज वेा इतना बडा हो चुका है कि इस सब का मतलब समझ सके लेकिन इसमें लटके जुराबों का मतलब वह आज भी नही समझ पाया। जिज्ञासा के साथ वह उन्हें छू कर देख रहा था कि एक हमउम्र लडके ने आकर टोक दिया।