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लॉकडाउन और महफिल-ए-मयखाना

27 दिसम्बर 2021

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*लॉकडाउन मे महफिल-ए-मयखाना*

              (हास्य व्यंग्य)


       मुद्रा एक ऐसी बेहया चीज है जो गिरती रहती है..हालांकि उतनी कभी नहीं गिरती जितना कि आज का आदमी गिर चुका है....जिद्दी तो गर्लफ्रैंड से भी ज्यादा न उठे तो न उठे..तो इस गिरी हुई मुद्रा को इस अर्थव्यवस्था को उठाने के लिए मयकदो को ये जिम्मेदारी सौंपी है.. मै हैरान हूं सियासत के हुनर पे जो चराग बुझा के रोशनी कर सकती है... सो मै गिरती हुई अर्थव्यवस्था को उठता हुआ देखने के और मुद्रा और मदिरा का संबंध समझने के लिए.. उस अर्थव्यवस्था की लेबोटरी मे ही जाना उचित समझा.. अतः बच्चन साहब की मधुशाला की रूबाई गाता हुआ "राह पकड़ कर एक चलाचल पा जायेगा मधुशाला"गुनगुनाता हुआ..राह पकड ली पर दिमाग ने खुराफात मचा रखी थी... कोराना के कोप से भयभीत इस पूरे विश्व मे लॉकडाउन के  दौरान जब  अर्थव्यवस्था चरमरा रही है लोग मर रहे हैं ,सड़कें सुनसान ..हर कोई परेशान.. और अस्पतालों की हालत कभी खुशी कभी गम वाली हो रही थी तथा जनता की हालत बॉबी फिल्म के गाने वाले थी अंदर से कोई बाहर ना जा सके बाहर से कोई अंदर ना आ सके सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो? तब तो मुझे पता नहीं था लेकिन अब सकता हूं कि  डेफिनेटली *लॉकडाउन* ही होगा इस  भीषण दौर में जब सब कुछ जाम हो रहा है सरकार ने जाम लगाने के लिए मयखाने खोल दिए खैर  सरकार ने खोलें है तो सोच समझ के ही खोले होंगे.....मुद्रा और मदिरा के इन अंतरंग संबंधों को आप ऐसे समझे कि"जिन के सर पर छप्पर और छाजन की युक्ति नहीं. दो जून के भोजन की चिंता से मुक्ति नहीं"वो भी खुले दिल से "एक नहीं दो चार दिला दे "वाली तर्ज पर देश की डूबती अर्थव्यवस्था को उबारने मे लगे है..मै उनके प्रति कृतज्ञ हो गया.. मेरा सारा ज्ञान, सारा परिश्रम.. और ये स्वाभिमान की मै भारत का भविष्य निर्माण करने वाला शिक्षक हूँ आज चूर चूर हो गया...क्योंकि मेरा तो खुद का भविष्य इन मस्तानो की टोली के मस्तीमन मे दबा पडा है...खैर मै एक मधुशाला के निकट पहुंचा तो वहां हालत देखकर मध में तुलसी साकार हो उठे * गिरा अनयन नयन बिनु वाणी* 

वाली स्थिति हो गई भगवान भुवन भास्कर अपनी तप्त किरणो से प्यासो की प्यास को और बढा रहे थे और लोग "सारी मधुशाला पी जाऊं " के इंतजार में पंक्तिबद्व तरीके से पूर्ण अनुशासन के साथ.. और कहीं कहीं मटकी फोड प्रतियोगिता की तर्ज पर लोगो के पिरामीड पर चढकर वो संजीवनी प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे  लेकिन जो भी बंदा गंगाधर बन के जाता था  उस जादुई चौखट को चूमते ही शक्तिमान बनकर गोल गोल घूमने लगता मुझे इन सोमरसिको को देखकर आनंद आ रहा और खुशी इस बात की थी कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही थी  लेकिन देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सहारा  देने के चक्कर में  ये रम बहादुर खुद डगमग डगमग हो रहे थे कुछ सोम रसिक मदिरा के बदले मुद्रा देने के बजाय वस्तु विनिमय कर रहे थे कुछ  लोगों ने बीपीएल कोटे के  राशन वाले गेहूं बेच के आत्मिक आनंद वाले सोमरस को खरीदा ...एक बंदे ने अपनी बेहतरीन घडी मधुशाला को भेंट करनी चाही ताकि देश का समय अच्छा आये लेकिन  बेदर्दी मदिरा वाले ने यह कहकर नकार दिया कि जब तुम्हारा इस समय खराब है तो तुम्हारी घड़ी का मैं क्या करूंगा 

तभी उसमें किसी शायर ने राग छेडा"मयखानों की मस्ती कहाँ आसान होती है

दारू उसे ही मिलती है जिसकी ठेके पर पहचान होती है"


 ....रफ्ता-रफ्ता सांप की तरह लाइनें रेंग रही थी तभी किसी की किडनी में सोमरस ने जोर मारा और वो  नागिन डांस करने लगा तभी एक बंगाली बाबू  मेरे पास आये  पता नहीं उन्हें ऐसा क्यूँ लगा कि मै उनके काम का आदमी हो सकता हूँ बोले "भाई सोब ! होमारे लिए भी कोई जोगाड़  कोरोना "...मैंने कहा चच्चा यहां पहले से ही  बहुत कोरोना चल रहा है और कितना कोरोना ....तभी पास बैठे नवयुवक मे पत्रकार की आत्मा जाग उठी क्योंकि थोड़ी देर पहले ही उसने दो पैग  लगाए थे "देखो... भाई साहब हम आपको कहे देत है..ई कोराना वोराना कछु ना है ई चीनवा का साजिश है कि लोगन आप आपन घर में रहे और ऊ...ससुर का नाती दुनिया पर राज करे... पर हम ..बब्बर ..शेर है ऊ छोटी आंखन वारे को घर  में घुसकर मारेगा"... मैं उसकी भाषण शैली से प्रभावित हुआ तभी पास वाले बुजुर्ग व्यक्ति मे  दार्शनिक वाले भाव आ गए (जिन्होंने थोड़ी देर पहले ही ठर्रा लिया था )

बोले.. बबुआ सुनो रे बबुआ कोरोना वरोना  कछु ना है ई तो  लीला है प्रभु की.... ऊ सांवरा सब कुछ जानता है पापिन पापिन को उठा लिए हैं ..कब कौन कैसा उठेगा वह सब जानता है वो जिसको जिलाना चाहे जिलायेगा जिसको मारना हो मारेगा 'होई वही जो राम रचि राखा" अब देखो हमारे गले मे सांस लेने का तकलीफ रही तो लॉकडाउन में दवा दारू कहां से लाएं...पर प्रभु दयालु है सब व्यवस्था कर दिये  इतना कहकर उसने फिर दो घूंट मारे और टहलता..ठुमकता चला गया .. तभी मेरे पास वाले भाई साहब बोले  हे!  ब्रो...ओ...जेंटलमैन व्हाट आर यू थिंक अबाउट दिस मैटर???!!  मैं चुप रहा तो मेरे चेहरे के पास  आकर फिर बोले"  व्हाट आर यू थिंक अबाउट ...यू आर नॉट...!!.. वो आगे कुछ कहना चाह रहे थे पर बोल नहीं पाए तभी बगल से क्वार्टर निकाला और दो घूंट मार के फिर बोले "चाइना इज नॉट मैटर ....लॉक डाउन इज नॉट मैटर .....मैटर इज दैट इंडियाज  इकोनामी इज  डाउन सो....!!...  इन सज्जन के अर्थव्यवस्था संबंधी ज्ञान को देखकर और मस्तों की टोली को देख कर मेरा वहां  खड़ा रहना मुश्किल हो गया तभी वहां पर एक मारवाड़ी भाई आ गया बोला  "भाई साहब बाप री होगन हूँ दारु पीवण नीं आयो ( मारवाड़ी रोटी से ज्यादा तो सोगन/सौगंध खाते हैं) म्हानै तो म्हारा हाथ मुंडो ,किडनी अर फेफड़ा  हैंग इज हैनिटाइज करना होवतां इण खातर हेनेटाइज लेवण नै आयो हूँ " डागदर कैवे दारू सूं बढिया हेनेटाइज र क्यूँ ही नहीं है"..है नी ओ भाईसा...उसने समर्थन के लिए मेरी ओर देखा.. मुझे उसकी वाकपटुता ने प्रभावित किया.. दारू क्या क्या नहीं कर देती है

    लेकिन मदिरा से सुरभित इन मतवालों के बीच मेरा बैठने का मेरा अनुभव नहीं है सो.. मैं वहां से रवाना हो गया तभी 20 साल का एक नवयुवक धक्के खाता ..गुनगुनाता हुआ गाता जा रहा था इधर चला मैं उधर चला जाने ना मै  ...किधर चला ...मुझे लगा  इसको क्या इस देश को भी पता नहीं किधर जाना था और  किधर जा रहा है ...


"सब गैर जरूरी बातों पर हम ध्यान लगाए बैठे हैं 

सच को दूत्कारा हमने 

झूठों पर कान लगाए बैठे है जिन हाथों में होनी थी भारत की पतवार सखे !

वो हाथ जाम थमाए बैठे है


©️ अजीत सिंह चारण

     जैतासर,रतनगढ( चूरू)

     9462682915

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<p>*लॉकडाउन मे महफिल-ए-मयखाना*</p> <p> &n

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