सिचवेसन है - "एक लड़की सामने से आ रही है
भारतेन्दु हरिश्चंद्र -
नव उज्ज्वल ललाट, हीरक नैन सोहते है
अधरों पे मुस्कान, अंग सबै को मोहते है
जब जब बाले तोरे से, नैन ये टकरावत है
मोरे मन में देवी, एक नया दर्द जगावत है
मैथिलीशरण गुप्त :-
तुम्हें देख कर लग रहा,
बाले आज मेरे मन को
सोच रहा हूँ तुम्हें सौंप दुं
प्रिय आज मेरे जीवन को
अलि की खातिर कलियां
खिलती रही है रूपसी
तू मेरे जीवन में आई
ज्यों सर्दी में धूप सी ||
माखनलाल चतुर्वेदी :-
क्या हेतु रहा तुम पर प्रिया यूँ हम जो मोहित हो रहे
क्यूँ भूल अपने को प्रेयसी अपनी सुध बुध खो रहे
तुझे देखकर लग रहा है चांद भी आज पुराना
उचित लग रहा परवानों का, शमां में जल मिट जाना ||
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला :-
देखो हमें,
मुड एक बार
हम खो रहे किस खोज में
देख तुम्हें यूँ प्रेयसी
अग्न सी लग रही हृदय में
झुलस रही क्यूँ देह सी
तुम्हें देखकर ही कलियों में
आया मद, यौवन उभार
देखो हमें, मुड एक बार ||
हरिवंशराय बच्चन :-
आज अनिश्चित किस जगह पर तेरे मेरे नयन मिले हैं
तुम्हें देखकर अयि प्रेयसी क्यूँ ये दिल सुमन खिले हैं
तुम मुझे मिल पाओगी यह भी कहाँ निश्चित है
और तुम्हे खोकर प्रिय क्या शेष रहा प्रायश्चित है ||
भवानी प्रसाद मिश्र :-
जी मैडम,
ये आंखे आप को देखती है और आप को देखकर
ये लग रहा है कि आप भी मेरी तरह
संकटग्रस्त हो जिस पीडा से,
मैं जूझ रहा हूँ उससे आप भी त्रस्त हो
आपका हंसना भी दिल चीर देता है
और आपकी आंखें मानो पत्थर फेंकती है
जी मैडम ये आंखे आपको देखती है ||
रघुवीर सहाय :-
तुम एक प्यार हो,
जिसमें भाव है,
भंगिमा है राग है,
द्वेष है
और एक अनजानी पीडा भी
पर मेरा दिल स्थिर है
क्यूंकि मैं अकेला हूँ
तुम जिस पथ पे खडी हो
बहुत घूमा हूँ वहाँ पर बहुत खेल ा हूँ
जीवन को बनाओ तो ऐसा
कि जीवन बहती धार हो
तुम एक प्यार हो ||
- अजीतसिंह चारण
लिंक रोड़, रतनगढ़ (चूरु)
मो. 9462682915