बेटियाँ
ये कैसा चमन बनाया है
हमने खुद को यूं नीचे गिराया है
हमने फरिश्ते थे हम अब दरिंदे हुए
कितना नीचे यूं खुद को गिराया हमने
कलि आज खिलने से डरने लगी है
सांस चलने से पहले ही थमने लगी है
बेटियां एक विधाता की थाती सी है
जो जन्मने से पहले ही मरने लगी है
जन्म दे के भी मान गिराया है
हमने बेटियों को क्यूं वस्तु बनाया है
हमने जो दुर्गा, जो काली और लक्ष्मी है
चंद पैसो की खातिर जलाया है
हमने आंसू गुडिया के भी हम धो ना सके
निर्भया की चिता पर भी रो ना सके
बस कैंडल जला के मनाते हैं
मातम दरिंदो को फांसी भी हो ना सके
हृदय में घुटन और सांसो में आहें
किस जोश से मैं उठाउं निगाहे
मेरे देश में आज लुटती है बेटी
रे कान्हा मैं कैसे दिलाउं पनाहे
रे कान्हा कन्हैया रे तू है मुरारी
बढाई जो तूने द्रोपदी की सारी
उसी आज अबला की फिर से बढाजा
रे गोविंद गोकुल में फिर से तू आजा
- अजीतसिंह चारण
लिंक रोड़, रतनगढ़ (चूरु)
मो. 9462682915