लोहरी का त्यौहार पंजाबियों का प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम से और नाचते गाते मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार को मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है। जब पंजाब में फसल काटी जाती है और नई फसल बोई जाती है इसे किसानो के नया साल भी कहा जाता है और साथ इस लोहड़ी के पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओं को महत्व दिया जाता है जैसे की – सुंदरी-मुंदरी और डाकू दुल्ला भट्टी की कथा, भगवान श्री कृष्ण और राक्षसी लोहिता की कथा, संत कबीर दास की पत्नी लोई की याद में, आदि।
एक बार की बात है दो अनाथ लड़कियाँ थी। एक लड़की का नाम सुंदरी और दूसरी का नाम मुंदरी था। सुंदरी और मुंदरी का एक चाचा भी था जो उनका विवाह विधिवत ढंग से करने के बजाय एक राजा को भेट स्वरूप देने चाहता है लेकिन उसी समय दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू भी हुआ करता था जो उन अनाथ लड़कियों को राजा को भेट होने से बचा लेता हो और उनके लिए योग्य वर की तलाश करके उनकी शादी पुरे विधिवत ढंग से कराता है और उनका कन्यादान भी स्वयं करता है। कन्यादान के रूप में दुल्ला भट्टी डाकू उनकी झोली में सेर शक्कर डालता है।
लोहरी पर्व मनाने के पीछे अन्य बहुत सी कथाएं प्रचलित है। कुछ लोगो का मानना है कि इस पर्व को संत कबीर दास जी की पत्नी लोई की याद में मनाया जाता है तो इसी प्रकार ऐसा भी कहा जाता है कि इसलिए लोहड़ी मनाई जाती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का वध करने के उद्देश्य से कंश ने लोहिता नाम की एक राक्षसी को भेजा था परन्तु भगवान श्री कृष्ण खेलते-खेलते उस राक्षसी का ही वध कर देते है।
लोहरी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है क्योंकि हर साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है इस प्रकार 13 जनवरी को लोहरी मनायी जाती है। ऐसा माना जाता है की उस समय से दिन छोटे और राते लम्बी होने लगती है। लोहरी के दिन सभी लोग नए नए कपडे पहनते है और खुशी मनाते है।
इस दिन सभी लोग नाचते व गाते है। सभी लोग लोहरी के लिए उपले और लकड़ियाँ एक स्थान पर इकठ्ठा करके उसका ढेर बना लेते है और शाम के समय उनको जला कर उसकी परिक्रमा करते है। सभी माताएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर लोहड़ी की अग्नि की चक्कर लगाती है और अग्नि में मूंगफली, रेवड़ी, मेवे, गज्जक, पॉपकॉर्न आदि की आहुति देते है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी के चक्कर लगाने से बच्चे को किसी की नजर नहीं लगती। किसानों द्वारा अपनी नई फसल का आहुति दी जाती है। प्रसाद के रूप में सभी लोगो में रेवड़ी, पॉपकॉर्न, मूंगफली का मिश्रण में बांटते हैं।
यह दिन नवविवाहित जोड़ो और नवजात शिशु के लिए बहुत ही ख़ास होता है क्योंकि इस दिन लड़की के घर वाले मूंगफली, रेवड़ी, मेवे, पॉपकॉर्न,कपड़े व मिठाई आदि भेजते है और इस शुभ दिन का आनंद उठाते है और भाँगड़ा करते है। इस दिन सभी लोग अपनी और अपने परिवार के खुशहाल जीवन की कामना करते है।
पंजाब के लगभग सभी लोग खेती से जुड़े है। पंजाब में अधिक संख्या में किसान मिलेंगे और सभी किसान अपनी खेती में बहुत की मेहनत भी करते है। लोहड़ी के पर्व को सभी किसान अपनी फसल के कटने की ख़ुशी और साथ ही नयी फसल लगाने की खुशी में भी मनाया जाता है। लोहड़ी को किसानो का नया साल भी कहा जाता है। सभी किसान भाई और उनके परिवार ख़ुशी मनाते है और भंगड़ा करते है और साथ साथ बोलियाँ गाते है
लोहड़ी भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में सिखों और हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शीतकालीन संक्रांति के अंत और माघ महीने की शुरुआत का प्रतीक है। लोहड़ी आमतौर पर जनवरी के 13वें दिन मनाई जाती है और इसे पंजाबी सांस्कृतिक कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है।
लोहड़ी की उत्पत्ति को रबी फसलों की फसल के उत्सव से जोड़ा जाता है, जिसमें गेहूं, गन्ना और सरसों शामिल हैं। यह त्योहार अग्नि के देवता अग्नि की पूजा से भी जुड़ा हुआ है, और इसे भरपूर फसल के लिए धन्यवाद समारोह माना जाता है।
त्योहार एक अलाव जलाकर मनाया जाता है, जो अग्नि देवता का प्रतीक है। लोग अलाव के चारों ओर इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं। वे खुशी के उत्सव में आग के चारों ओर गाते और नृत्य भी करते हैं। लोहड़ी का पारंपरिक गीत “सुन्दर मुंदरिए हो” हर कोई गाता है। लोहड़ी दोस्तों और परिवार से मिलने और मिलने का भी समय है।
लोहड़ी बांटने और देने का भी पर्व है। लोग दोस्तों और परिवार को मिठाई, गन्ना और पॉपकॉर्न बांटते हैं। यह फसल के सौभाग्य और आशीर्वाद को दूसरों के साथ बांटने का एक तरीका है।
लोहड़ी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा, त्योहार की गहरी ऐतिहासिक जड़ें भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता द्वारा मनाया जाता था, और ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार हजारों वर्षों से मनाया जाता रहा है।
आजकल, भारत और पाकिस्तान और यहां तक कि विदेशों में विभिन्न समुदायों के लोग लोहड़ी समारोह में भाग लेते हैं। त्योहार क्षेत्र और समुदाय के आधार पर विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर, यह अधिक गंभीर और धार्मिक घटना है, जबकि अन्य में यह अधिक जीवंत और उद्दाम उत्सव है।
अंत में, लोहड़ी भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में सिखों और हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार शीतकालीन संक्रांति के अंत और माघ महीने की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्यौहार अग्नि के देवता अग्नि की पूजा से जुड़ा हुआ है, और इसे भरपूर फसल के लिए धन्यवाद समारोह माना जाता है। यह साझा करने और देने का त्योहार है और बसंत ऋतू आने का स्वागतोत्सव है