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मनोरंजन ( लघुकथा )

2 फरवरी 2020

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लघुकथा


मनोरंजन


" कुछ भी हो भाई नाटक दमदार है . एक - एक किरदार को बड़ी मेहनत से गढ़ा गया है और हर कलाकार ने पूरे मन से काम किया है ."

" ठीक कहा भाई ! हीरोइन भले ही नई है पर एक्टिंग ऐसी की है कि जैसे उसका जन्म इसी किरदार के लिए हुआ हो . कहीं से लगता ही नहीं है कि ये वो जुम्मन - बी नहीं है जो दो सौ साल पहले हैदराबाद के किसी मोहल्ले में एक आम लावारिस लड़की के रूप में आयी थी , जब उसने एक रक्कासा की जिंदगी शुरू की तो धीरे - धीरे इस कदर आम से खास हुई कि उसका नशा शहर के आम लोगों से होते हुए सारे रईसों पर इस कदर सरमाया हुआ कि वो हर खासो - आम के लिए एक जुम्मन - जान के ओहदे पर पहुंच गयी . "

" अबे इतना ही नहीं , वो जुम्मन - बी जिसे लोग घर में बांदी रखना भी मुश्किल से तैयार होते थे , देखते ही देखते एक शहर की नहीं पूरी रियासत की सबसे दमदार शख्सियतों में गिनी जाने लगी . भाई कमाल की शोहरत और कमाल की एक्टिंग ! देखकर मजा आ गया . "

" अबे उस रईस को मत भूल जो जाहिरा तौर पर गरीब आवाम का फरिश्ता और बेहद जहीन इंसान पर असल में खूंखार भेड़िया . जिसे भी उसने अपने दहशत - भरे धंधे में रुकावट माना , उसे इस दरिंदगी से कत्ल किया कि खुद दहशत भी काँप उठे . किस्मत थी जुम्मन - बी की , कि रईस का दिल उसके जिस्म पर आ गया और ऐसा आया कि पूरी रियासत पर राज करने वाले रईस के दिल पर जुम्मन - बी का राज चलने लगा और वो सारी रियासत की जुम्मन - जान के नाम से मशहूर हो गयी ."

" जो भी हो भाई . दोनों की जबरदस्त एक्टिंग और केमिस्ट्री . दोनों के हिस्से के जबरदस्त डायलॉग जो उन्होंने इतनी काबलियत से डिलीवर किये कि लगा हम तीन घंटे तक थेटर में नहीं थे , खुद शहर हैदराबाद में थे . भाई पूरा लुत्फ़ आया . मैं तो एक बार फिर देखूँगां . " शाहिद ने कहा .

" अबे वो आखिरी सीन जिसमे रईस , जुम्मन के साथ हम बिस्तर होने के बाद उसका कत्ल जिस बेदर्दी से करता है , उस सीन में तो उसका एक - एक एक्शन कमाल का है भाई . बिलकुल असली जैसा . एक बार तो दिमाग दहशत से भर गया पर सीन और एक्टिंग में असलियत इतनी जबरदस्त थी कि दिल से उफ़ कि जगह वाह ही निकली . भाई कलाकारी हो तो ऐसी . दोनों ही क्या कमाल के एक्टर हैं . सीन को हकीकत से सराबोर कर दिया ! ....... अबे ये तो घर भी आ गया . अच्छा खुदा हाफिज , शब्बा - खैर . कल मिलते हैं .

दोनों यारों ने एक दूसरे से रुखसती ली और अपनी - अपनी गलियों की ओर मुड़ लिए .

शाहिद अपने घर के करीब पहुंचा तो वहां भीड़ देखकर सकते में आ गया , " दोपहर तक तो सब ठीक था . अब क्या हुआ ? " उसका चेहरा पीला पढ़ने को हुआ . घर के करीब पहुंचा तो पता लगा दोपहर बाद कुछ लोगों ने उनके घर पर हमला किया था जिसमें उनकी बहन को बेइज्जती भी झेलनी पड़ी थी . गुंडे अपना काम करते रहे थे और लोगों का हुज्जूम तमाशबीन बना रहा था . उनकी तमाशबीनी की हद ये थी कि वे अब भी वहां से हटने का नाम नहीं ले रहे थे .

शाहिद ने अम्मी से पूछा , " ये सब क्या है अम्मी . तबस्सुम गमगीन क्यों है ."

" अरे कहाँ थे रे नासपीटे . तेरे पीछे यहां मोहल्ले के गुंडे दहशत का खेल खेलते रहे . और तेरा कहीं अता - पता नहीं था . तू आखिर गया कहाँ था ? "

" अम्मी ! हर कोई हर वक्त घर में तो नहीं रह सकता न . कभी - कभी तो तफरीह भी करनी पड़ती है . गुंडों ने हमला कैसे कर दिया . अड़ोस - पड़ोस में सब लोग तो थे ही . किसी ने रोका नहीं उनको ? ."

" अरे इन्हे यहां से दफा कर . गुंडों के हाथ में लोहे के सरिये थे . जब गुंडे अपना कहर बरपा रहे थे ये सब लोग तमाशबीन बने खड़े थे . पहले इन्हे भगा फिर बताती हुँ कि गुंडे कौन थे और उन्होंने दरिंदगी का कौन सा इस घर पर चस्पा किया . "

शाहिद अपना सर पकड़ कर फर्श पर बैठ गया . वह मोहल्ले की भीड़ की ओर देख कर चीखा , " क्या ये किसी थेटर का किरदारि सीन है ? बेगैरतों भाग जाओ यहां से ."

पर उसकी चीख उसके अंदर कहीं दब कर रह गयी गयी . लोग वहां से हिलने को तैयार नहीं थे . वे जानना चाहते थे कि गुंडों ने घर में लूट के अलावा क्या किया है .


सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

साहिबाबाद ।

9911127277

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