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तुम्हारी याद

19 अक्टूबर 2020

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कविता


तुम्हारी याद


तुम यादों से विस्मृत हो जाओ

सम्भव नहीं है ये ,

तुम पटल से उतर जाओ

स्वीकृत नहीं है ये ।


न करो याद तुम

फ़र्क पड़ता है क्या ?

न करो विश्वास तुम

समय रुकता है क्या ?


श्वास तो चलते हैं

हृदय भी धड़कता है

दोनों ही के स्पंदन में

ध्वनि हो या प्रतिध्वनि

तुमसे ही होकर आती है ।


करता हूं मैं तुमसे प्रेम

कहना ये आसान नहीं ,

शब्दों के जंजालों से

होना मुक्त ,दुश्वार नहीं ।


अतंर्वेधित व्यथा है ये

जीवन का विश्राम नहीं ,

निकल भागना इससे यूं

असम्भव है , विराम नहीं ।


अंतर्मन में डूब कर देखो

उपवन कुछ, हरे - हरे से पाओगे

झूठ के जंगल हट जाएंगे

निर्मल धारा में इठलाओगे ।


सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

साहिबाबाद ।

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