लघुकथा
साफ्ट कॉरनर
" मैं जानती हूँ कि आपके दिल में मेरे लिये एक खास किस्म का साफ्ट कॉरनर है परन्तु मेरे लिये आप एक अच्छे और शायद सच्चे दोस्त हैं ,इसके अलावा कुछ नहीं । इसे ही मान लिजिये प्लीज क्योंकि उसी नाते मैं आपको ,अपनी कोई भी बात बड़ी बेबाकी से कह लेती हूँ । " शिखा ने अपनी चिर परिचित मासूमीयत एक बार फिर उसके सामने परोस दी ।
" गलत अनुमान है ,तुम्हारा । साफ्ट से कुछ ज्यादा की बात करो । " अजय भी आर - पार की मुद्रा में था ।
" क्या कहना चाहते हैं, मैं समझी नहीं ! " शिखा जान कर भी अंजान बनने पर अड़ी थी ।
" नहीं जानती तो न सही । ठीक है कोई और बात करो ।" अजय ने शिखा की बात को जानबूझ कर अनदेखा करने का मन बनाया ।
" जब तक बतायेंगें नहीं तो पता कैसे लगेगा । बोलिए ये साफ्ट से ज्यादा क्या होता है ? " शिखा के स्वर में पहले के मुकाबले कोमलता अधिक थी ।
" अगर मैं कहूँ कि तुम दुनिया के सबसे सुन्दर व्यक्तित्व की स्वामिनी हो तो ?" अजय ने अपनी हिम्मत को बटोरने की कोशिश की ।
" ये आपकी द्रष्टि का भ्रम भी तो हो सकता है । दुनिया में एसा कुछ भी नहीं होता जो अन्तिम हो ।किसी भी छत से उंची एक नई छत कभी भी बन सकती है ।" शिखा की मुद्रा हार न मानने की थी ।
" तो फिर यही समझ लो कि मेरे लिये तुम्हारा मुकाम सबसे उँचा है । उससे उँचा कुछ नहीं ।" अजय मन की बात जिह्वा पर लाने को आतुर दिखा ।
शिखा चोट खाई हुई हिरनी थी । उसने ये बातें, अनिरुध से पहले भी कभी सुनी थीं ।अनिरुध जिस तेजी से उसकी जिन्दगी का हिस्सा बना था ,उससे भी ज्यादा तीव्रता से उससे अलग भी हुआ था । दोष किसका था ये तो शिखा भी तय नहीं कर पायी परन्तु परिणाम जरुर कष्टदायी थे ।
" क्या सभी पुरुषों को एक ही तरह की बातें बनानी आती हैं ? "
" हो सकता है ,बातें एक ही तरह की हों पर उन्हें निभाने का अंदाज तो हरएक का अपना ही होता है ।" अजय अचानक कह गया ।
" आपकी इस बात में जरुर दम है । लगता है ,आप पर विश्वास करना पड़ेगा ।" शिखा मुस्कुरा रही थी ।
" तो इजाजत हो तो आज की यह सर्द शाम तुम्हारे नाम कर दूँ ।" अजय के चेहरे को मुस्कुराहट ने ढक लिया ।
" इतनी भी क्या जल्दी है ।थोड़ा सोचना तो पड़ेगा ही न । वैसे चाहो तो काफ़ी साथ पी जा सकती है ।"
" और अगर, एक प्लेट ही सही , पकोड़े भी हो जायँ तो ? " अजय ने कहा ।
" हाँ ,चल जायेंगें ।पर एक ही क्यों ,जी भरके भी तो चल सकते हैं ? " शिखा अचानक बोल गयी।
" यही तो है ,साफ्ट कॉरनर से आगे की बात ।" कहकर अजय ने पलक झपकते ही ,शिखा के हाथों को अपनी हथेलियों में समेट लिया । शिखा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया और नजरें नीची करके उसे देखने लगी ।कपोल उसके पहले ही लाल हो चुके थे ।
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन ,साहिबाबाद । 201005
( 9911127277 )
09/11/2019