shabd-logo

गुनगुनाह ट

21 दिसम्बर 2019

441 बार देखा गया 441

कविता


गुनगुनाहट


क्या तुम्हारी रगों में अपने भारत की मिट्टी से सुगंधित रक्त नहीं बहता ,

क्या यहां के खेतों में उगा सोना तुम्हारे सौंदर्य में व्रद्धि नहीं करता ,

क्या यहां की नदियां , झरने और दूर - दूर तक फैले हरे - भरे मैदान तुम्हारे अन्दर के संगीत का कारण नहीं बनते ,

क्या उंचे - उंचे पेड़ों से सज्जित हिमालय के गगनचुम्बी पहाड़ तुम्हें आकर्षित नहीं करते ,

क्या हिन्द के सागर की गगन छूती हिलोरें तुममें उंचीं उड़ानों की हसरतें नहीं बनातीं ,

क्या हर दिन की एक नई त्योहारी रंगत तुम्हारी दिनचर्या में एक नया इन्द्रधनुष नहीं रचती ,

क्या इस देश की गलियां , मोहल्ले और दूर तक फैले छोटे - बड़े रास्ते तुम्हारी जिन्दगी की हर मंजिल को छूने का साधन नहीं बनते ,

क्या अम्मा - बाबा और उनसे जुड़े - अनजुड़े सारे रिश्ते तुम्हें जीने का मकसद नहीं देते ,

हाँ ! ये सब कुछ मिलता तो है मुझे इस माटी की भीनी - भीनी सुगंध में !

तो फिर तुम इसे जलाने की बात क्यों करते हो ?

क्यों बनते हो मोहरा उन नकाबपोश हैवानों का ,

जो करते हैं रश्क तुम्हारी मेहनतकश खुशनसीबी से ,

जो जोंक की तरह तुम्हारे हकों को अपनी सहूलियतों की जागिरों में सिमटाते आएं हैं ,

बोलो ! क्या न पूछूं मैं ये सारे सवाल तुम्हारी मासूमियत से ?

मत पूछो ! मत करो और अधिक शर्मिंदा मुझे ,

मैं खुद ही निपट लूँगा उन खुदगर्ज सफेद्पोश मक्कार रक्तखोरों की जिस्मफरोश हैवनीयत से ,

जिन्हें खून की खेती खूब रास आयी है ।

जिन्होनें मेरे सारे हक़ निचोड़ लिये हैं मेरे पसीने से ,

मुझे अजीज है मेरी इस नर्म मिट्टी की महकती महक ,

इसे ऐसे ही महकाने से महकता है मेरा वजूद ,

महकना और महकाना ,

यौवन सा सजना , वसंत सा गुनगुनाना ,

मुझे है बनाना जिन्दगी का आशियाना ।


सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन , साहिबाबाद ।

पिन : 201005 (ऊ.प्र.)

SURENDRA ARORA की अन्य किताबें

1

कसक

2 अक्टूबर 2019
0
0
0

लघुकथा कसकदिन ढले काफी देर हो चुकी थी ।शाम, रात की बाहों में सिमटने को मजबूर थी । वो कमरे में अकेला था । सोफे का इस्तमाल बैड की तरह कर लिया था उसने । आदतन अपने मोबाईल पर पुरानी फिल्मों के गाने सुनकर रात के बिखरे अन्धेरे में उसे मासूमियत पसरी सी लगी । वो उन गानों के सुरीलेपन के बीच अपने तल्ख हुए सु

2

टेंशन

2 अक्टूबर 2019
0
1
0

लघुकथा ..................टेंशन अवकाशप्राप्ति बड़ी इज्जत से हुई . सभी ने उनके पूरे कार्यकाल की बड़ी तारीफ़ की . उनकी ईमानदारी और कर्मठता को हरेक ने सराहा . उपहारों का सिलसिला तो अगले दिन तक भी चलता रहा . कुछ ने कहा , " ऐसे समर्पित अधिकारी बहुत कम होते हैं और यदि आपके अनुभव का लाभ , विभ

3

लघुकथा ............वीरानगी

2 दिसम्बर 2019
0
2
0

लघुकथावीरानगी " तो फिर तूने उनका पीछा किया ! "" हां किया , मेरे पास और कोई चारा नहीं है ।"" कितनी दूर तक गयी ? "" जब तक कि वे मुझसे औझल नहीं हो गये ।"" अगर उन्हें पता लग गया तो ?"" तो क्या ? मैं उन्हें एसा सबक सिखाऊँगी कि सारी ऊमर याद रखेंगें " वो बहुत आवेश में थी । " तुझे पूरा यकीन है कि वे किसी अ

4

लघुकथा ...........स्विच आफ

7 दिसम्बर 2019
0
1
0

किसी के प्रति आकर्षण कभी भी सम्मोहन में बदल सकता है ।रुचियां हमेशा हमसफर ढूँढ़ती रहती हैं । प्यार वो समुंदर है जिसमें हर उम्र समा जाती है ।प्यार शक्ति है तो कमजोरी भी यही बनता है ।______________________________________________________लघुकथास्विच आफ " इतने दिन से कहां थीं ? "" होना कहां है ,घर पर ही

5

साफ्ट कॉर्नर

9 दिसम्बर 2019
0
0
0

लघुकथासाफ्ट कॉरनर " मैं जानती हूँ कि आपके दिल में मेरे लिये एक खास किस्म का साफ्ट कॉरनर है परन्तु मेरे लिये आप एक अच्छे और शायद सच्चे दोस्त हैं ,इसके अलावा कुछ नहीं । इसे ही मान लिजिये प्लीज क्योंकि उसी नाते मैं आपको ,अपनी कोई भी बात बड़ी बेबाकी से कह लेती हूँ । " शिखा ने अपनी चिर परिचित मासूमीयत

6

गुनगुनाह ट

21 दिसम्बर 2019
0
0
0

कविता गुनगुनाहट क्या तुम्हारी रगों में अपने भारत की मिट्टी से सुगंधित रक्त नहीं बहता ,क्या यहां के खेतों में उगा सोना तुम्हारे सौंदर्य में व्रद्धि नहीं करता ,क्या यहां की नदियां , झरने और दूर - दूर तक फैले हरे - भरे मैदान तुम्हारे अन्दर के संगीत का कारण नहीं बनते ,क्या उंचे - उंचे पेड़ों से सज्जित ह

7

मनोरंजन ( लघुकथा )

2 फरवरी 2020
0
1
0

लघुकथा मनोरंजन " कुछ भी हो भाई नाटक दमदार है . एक - एक किरदार को बड़ी मेहनत से गढ़ा गया है और हर कलाकार ने पूरे मन से काम किया है ." " ठीक कहा भाई ! हीरोइन भले ही नई है पर एक्टिंग ऐसी की है कि जैसे उसका जन्म इसी किरदार के लिए हुआ हो . कहीं से लगता ही नहीं है कि ये वो जुम्मन - बी नहीं है जो दो

8

मैं जब भी

16 फरवरी 2020
0
2
0

कविताजब भी मैंमैं चुप बैठकर जब भी खुद से बात करता हूँ,मैं हर उस पल उसके साथ टहलता और विचरता हूँ।साथ मेरे दूर तक जाती है वीरान तन्हाईयां,फिर भी मैं उसकी बाहों में गर्म राहत महसूस करता हूँ।होता है सफर मेरा अधूरा दूर छीतिज तक, मैं फिर भी हर सफर में उसके साथ रहता हूँ।होती नहीं वो पास मेरे किसी भी पड़ा

9

किरायेदार

10 सितम्बर 2020
0
1
0

लघुकथाकिरायेदार" भैया ये छह पाईप हैं जो पास की दूकान पर ले चलने हैं , ले चलोगे ? " मैंने ई - रिक्शे वाले को रोककर कहा ।" जी, ले चलेंगे । "" बताओ किराया क्या लोगे ? " " सत्तर रुपए लगेंगे ।"" भैया , पचास लो । सत्तर का काम तो नहीं है । "" ठीक है , पचास दे दीजिएगा ।"" तो फिर लाद लो । "वो अपने काम पर

10

तुम्हारी याद

19 अक्टूबर 2020
0
0
0

कवितातुम्हारी याद तुम यादों से विस्मृत हो जाओ सम्भव नहीं है ये ,तुम पटल से उतर जाओ स्वीकृत नहीं है ये । न करो याद तुमफ़र्क पड़ता है क्या ?न करो विश्वास तुमसमय रुकता है क्या ?श्वास तो चलते हैंहृदय भी धड़कता है दोनों ही के स्पंदन मेंध्वनि हो या प्रतिध्वनि तुमसे ही होकर आती

11

सर जी की दूसरी पारी

23 मई 2021
0
0
0

लघुकथा सर जी की दूसरी पारी कुंदन पार्टी कार्यालय के गेट पर जाकर जोर - जोर से चीखने लगा ," मैं बर्बाद हो गया पहले की तरह आज भी गरीब की कोई सुनने वाला नहीं है ..... जहाँ भी जाओ दुत्कार मिलती है ......सर जी कहाँ हैं ..... उनका फोन भी नहीं लग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए