लघुकथा
सर जी की दूसरी पारी
कुंदन पार्टी कार्यालय के गेट पर जाकर जोर - जोर से चीखने लगा ," मैं बर्बाद हो गया पहले की तरह आज भी गरीब की कोई सुनने वाला नहीं है ..... जहाँ भी जाओ दुत्कार मिलती है ......सर जी कहाँ हैं ..... उनका फोन भी नहीं लग रहा ..... मुझे सर जी से मिलना है ... अगर आज मैं उनसे नहीं मिल सका तो मरने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं रहेगा। "
उसकी चीख धीरे - धीरे चीत्कार में बदलने लगी। पहले तो गेट के गार्ड ने कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु जब वहां से गुजरने वाले कुछ राहगीरों का जमावड़ा होने लगा तो गार्ड ने संदेशा अंदर भिजवा दिया। सर जी को कुर्सी मिले कुछ ही दिन हुए थे। आफिस में इंटरकॉम और सी. सी. टी.वी.की मुस्तैद व्यवस्था करवा ली थी। गेट पर हो रही धमाचौकड़ी का लाइव प्रसारण देखते देर न लगी।गार्ड का सन्देश मिलते ही सामने रखे टी. वी. स्क्रीन पर नजर दौड़ाई," अरे ये तो वही कुंदन है जिसने आंदोलन के दिनों में झुग्गी - बस्ती वाली भूख हड़ताल में लगातार नीबू - पानी की व्यवस्था की थी। "
उसे तुरंत अंदर बुलवा भेजा।
" सर जी ! बड़ा अनर्थ हो गया। मैं तो कहीं का नहीं रहा। बापू तो दम तोड़ने के लिए तैयार बैठा है। मेरी मदत कीजिये। " कुंदन हांफ रहा था।
" घबराओ नहीं कुंदन। जरुरत के दिनों में तुमने जो सेवा हमारी और पार्टी की ,की थी ,उसे हम भूले नहीं हैं।परेशानी को साफ़ - साफ़ बताओ ,तुम्हारी पूरी मदत की जाएगी। "
" सर जी ! बस्ती के पड़ोस में शराब का जो नया ठेका खुला है, उसका सेल्समेन अपना वही कार्यकर्ता जमील है जो आपकी भूख हड़ताल के समय हर रात आपको ताकत के केप्सूल लाकर देता था। मेरा बापू और वो पहले एक साथ फुटपाथ पर ताश के पत्तों का मजमां लगाकर थोड़ा - बहुत कमा लिया करते थे। जब से जमील को सेल्समेनी मिली है , बापू उसके पास जाकर बैठ जाता है। बदले में जमील ,बापू को कभी अद्धा तो कभी पौवा फ्री में दे देता था । बापू अब दिन भर वहीँ पड़ा रहता है और बुरी तरह से शराब का आदी भी हो गया है। कुछ दिन से जमील ने बिना पैसे लिए बापू को शराब देने से मनाकर दिया तो कल दोनों के बीच तकरार के बाद ,मार - पीट की नौबत आ गयी। उस मार - पीट में बापू ने पास पड़ी कांच की खाली बोतल , जमील को दे मारी। दोनों को ही चोटें आयीं हैं। पुलिस दोनों को पकड़ कर थाने ले गयी है। "
" ये तो बहुत गलत हुआ । तुम्हारे बापू को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए था। खैर छोड़ो , तुम हमारे पुराने कार्यकर्ता हो ,बताओ क्या चाहते हो ? कहो तो अभी थाने फोन करके तुम्हारे बापू को छुड़वा देता हूँ और सरकारी अस्पताल में दवा - दारू का भी इंतजाम हो जायेगा । "
" सर जी ! मुझे आप पर यकीन है। वो तो हो ही जायेगा। बापू को तो अभी कुछ दिन जेल में ही रहने दीजिये। उसे फ्री की शराब की लत लग चुकी है , उससे मेरी माँ की जान भी चली गयी है क्योंकि बापू ने फ्री की शराब के चक्कर में कमाना - धमाना बिलकुल ही बंद कर दिया है , जेल में कुछ दिन रहेगा तो क्या पता ,उसका दिमाग ठिकाने पर आ जाय। " कुंदन तो जैसे कुंदन बनने पर उतारू था।
" कुंदन ,तुम तो सचमुच ही कुंदन हो। पर तुमने मद्द्त वाली बात तो बताई ही नहीं ? " सर जी के अंदर बैठा नेता बोला।
कुंदन ने हाथ जोड़ दिए और बोला ,"सर जी ! मेरी गुजारिश यह है कि आप उस ठेके का या तो लाइसेंस रद्द करवा दीजिये या फिर उसे बस्ती से बहुत दूर वीराने में भिजवा दीजिये । क्योंकि मेरे बापू की इस जिल्लत और मेरे घर की बर्बादी का जिम्मेदार वही ठेका है ,जो हमारी बस्ती के शुरू में ही तना हुआ है। "
" बात तो तुम्हारी ठीक है। " सर जी से नेता बने मंत्री जी की चिंता अपने चरम पर थी।
" तो आप ,आज ही इस काम को कर दीजिये। मैं इसे करवा कर ही जाऊंगा। " कुंदन पास पड़े सोफे पर बैठ गया।
सर जी ने पी ए को बुलवाया और एक लेटर टाइप करवा कर कुंदन को देते हुए कहा ," ये लेटर ,जाकर ठेके के मालिक को देकर कहना की आज से उसके ठेके का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया है ,अब वह इसे नहीं खोल सकता। "
कुंदन ने लेटर को अपनी जेब के हवाले किया। उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। वह उनसे विदा लेते हुए बोला , " आप जैसे नेता विरले ही होते हैं , सर जी । "
कुंदन , सर जी के गेट से बाहर आकर सड़क पार करने के लिए आगे बढ़ा ही था कि एक तेज रफ़्तार टेम्पू ने कुंदन को इतनी जोर की टक्कर मारी कि अस्पताल पहुँचने से पहले ही कुंदन की साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया।
शहर में शांति से सबकुछ पूर्वत जारी था।
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
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