भक्ति लहर बहती हैगङ्गा के तट परकितना निर्मल कितना पावनमानों लहरों की गति के साथबहती स्वर धारामन का रोम रोम खिला देती हैहाँ ये पावन गङ्गासारा दुख हर लेती हैशहर की अनमोल धरोहरजिससे चलता है प
हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहेकब हुआ ये शहर अपना ?सफर में ही किया सफर में बसर अपनाछोड़ आये हैं यादों भी का घर अपना।लगी थी होड़ आगे जाने की ऐ - जिंदगीन मौत आयी मुझे न मिला ज़फ़र अपना।हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही