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कब हुआ है शहर अपना...

19 मई 2022

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हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहे
कब हुआ ये शहर अपना ?
सफर में ही किया सफर में बसर अपना
छोड़ आये हैं यादों भी का घर अपना।
लगी थी होड़ आगे जाने की ऐ - जिंदगी
न मौत आयी मुझे न मिला ज़फ़र अपना।
हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहे
कब हुआ शहर अपना ?
Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना कृपया मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10080388

19 मई 2022

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रचनाएँ
मेरा शहर
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मेरा शहर जैसा नाम से विदित है,यह मैं अपने शहर के विषय में छोटी सी सी छोटी बात कविता के माध्यम से व्यक्त करना चाहती हूं बचपन से जुड़ी यादों का शहर,यौवन की दहलीज पर कदम रखते खुद में सिमट जाने का शहर,वास्तव में देखा जाये तो बहुत कुछ समेत रखा है। शाहर ने मेरे। गङ्गा और यमुना के घाटों का शहर कतरा कतरा बनता बिखरता शहर मूक अदृश्य सरस्वती की खनखनाती हँसी विधा के रूप में विश्विद्यालय की गरिमा का शहर बहुत कुछ तो है इस शहर में
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सड़क

2 मई 2022
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खाली ही तो पन्ना हैसोचती हूँ लिख दूँमैं अल्फाज अपनेरंग मुहब्बत के सुर्ख लाल से।शहर की सड़क कभी खाली नही होतीगाड़ियों की आवाजाही लगी रहती हैबस चंद लम्हों के लिये रुक जाती हैएक सन्नाटा पसरा जाता है।गाड़ियो

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शहर का इश्क

19 मई 2022
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जब इश्क थक जाता हैचलते -चलतेअनजान बन जाते हैंजैसे पहचानते नहीकभी कभी भीड़ मेंभाई बहन बन करचलते हैं दोनों लगता है प्रेमी प्रेमिका नहीकभी अनजान बनकर गीत गाते हैंचलो एक बार अजनबी बन जाये हम दोन

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गङ्गा

19 मई 2022
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गङ्गा की रेत मानो उसका आँचलफैला की संगम के तट परबुलाता है आओ बैठोमुझे भी तुम्हारी जरूरत हैसुबह भीड़ में हर कोई छूना चाहता हैमानो सारी पवित्रता भर जायेगी मेरीमगर दोपहर की चमकती रेत परकोई नही गुजरत

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जंग

19 मई 2022
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एक लय एक ताल एक स्वर कीमधुर ध्वनि करती करतालसम विषम से बने मकानविषम लोग अजब मानसिकताअजब गजब विचारों का समूह है शहरबहुत दूर से आए अलग अलग लोगएक मौहल्ला बनाकरबन जाते अपने सेगली कुचे सड़कबस्तियों का

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मेरा शहर

19 मई 2022
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मेरा शहरकुछ यादें कुछ लम्हेकुछ बंदिशेंमगर बहुत कुछदिया है इसनेमेरे होने का अस्तित्वमुझे जिंदगी के तजुर्बे, औरएक छत...जो इंसान की जरूरत हैऔर क्या चाहिए जिंदगी तुमको ?बस मुस्कान ही तोबहुत लोगों&nbs

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कब हुआ है शहर अपना...

19 मई 2022
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हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहेकब हुआ ये शहर अपना ?सफर में ही किया सफर में बसर अपनाछोड़ आये हैं यादों भी का घर अपना।लगी थी होड़ आगे जाने की ऐ - जिंदगीन मौत आयी मुझे न मिला ज़फ़र अपना।हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही

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परिंदे

19 मई 2022
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है तपन है बढ़ी जल रहा है शहर,धुएं की चादर ओढ़कर जल रहा है शहर।अब परिंदे भी तो जाएं किधर ?दरख्तों में अब न रहा है बसर।उड़ गयी तितिलियाँ अब बगानों से,अब मचा है तो देखो ,कहर ही कहर।दरख्तों में अब पड़ गयी दरा

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यादों का शहर

19 मई 2022
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ये सड़क के किनारे लगे पलाश के फूल अब भी निहारतेखड़े हैं राह किसी कीये चौराहा कटरा बाजारनेतराम की कचौरी की महकये हॉस्टल के बच्चे एक आशा और विश्वास का सागर लेकरआते प्रयागराजये विश्वविद्यालय ये स

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एक लहर

19 मई 2022
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भक्ति लहर बहती हैगङ्गा के तट परकितना निर्मल कितना पावनमानों लहरों की गति के साथबहती स्वर धारामन का रोम रोम खिला देती हैहाँ ये पावन गङ्गासारा दुख हर लेती हैशहर की अनमोल धरोहरजिससे चलता है प

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