19 मई 2022
हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहेकब हुआ ये शहर अपना ?सफर में ही किया सफर में बसर अपनाछोड़ आये हैं यादों भी का घर अपना।लगी थी होड़ आगे जाने की ऐ - जिंदगीन मौत आयी मुझे न मिला ज़फ़र अपना।हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही