दान वो होता है जो गुप्त दिया जाए, काम वो होता है जो खुद बोले, तारीफ़ वो होती है जो दूसरे करे. बता कर चंदा दिया जाता है, काम करने का शोर मचाना प्रचार होता है, खुद की तारीफ करने वाला मियाँ मिठ्ठू होता है. दान बिना स्वार्थ दिया जाता है, चंदा स्वार्थ के साथ दिया जाता है, बिना शोर मचाये किया काम समाज सेवा होती है और काम करने का शोर मचाना चुनावी प्रचार होता है. खुद की तारीफ़ स्वार्थी करते जो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम कर उसे जनसेवा बताते है. पद के लालच में लोग विचारधारा भी बदल लेते है, कल तक जो गलत हो रहा था वो फिर सही नज़र आता है. सोते है तो गांधीवादी होते है और अगले रोज़ उठ कर पद के लालच में नाथूवादी हो जाते है. हृदयपरिवर्तन का तमाशा सरेआम हो रहा है, और सब खामोश है. जनता से प्रजा बनना ही जनता की महान उपलब्धि है. प्रजा थे और राजा उस प्रजा पर राज करते थे, फिर ज़माना बदला प्रजा जनता बन गई और राजा उस जनता का हिस्सा, और उसे कहा प्रजातंत्र, अब वापिस चल दिए और जनता फिर से प्रजा बनने को उत्साहित हो गई, और राजा फिर से राजा हो गया, इसे कहते है परिवर्तन चक्र. (आलिम)