
हमारा मन जाग रहे हैं तो सोचता है और सो रहे हैं तो सपनों में सोचता है। सोचना उसकी नियति है इसीलिए तो निरंतर सोचता रहता है। मन अपनी सोच पर मनन करता है तो सार्थक विचार बनता है वरना तो जो जी में आए सोचता ही रहता है। सभी को बहुत कुछ चाहिए पर सब कुछ सभी को मिलता नहीं। मिलता वही है जो मन का सोचा चिंतन के बाद लक्ष्य बन जाता है और उस लक्ष्य को पाने के लिए किया गया प्रयास ही उसको प्राप्त कराता है।