जब कोई व्यक्ति मृत्यु शय्या पर पड़ा होता है, किसी असाध्य रोग से पीड़ित होता है, ऊपरी प्रभाव या हवाओं से निरन्तर रोगग्रस्त रहता है या अचानक दुर्घटना के कारण मृत्यु की घड़ियां गिन रहा होता है तो कहते हैं कि महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ करा लो। इससे मृत्यु भी टल जाती है।
मन्त्र के लिए कह सकते हैं कि वह मन व हृदय से निकली हुई सच्ची पुकार है। मन-त्रायते इति मंत्र। बार-बार बोलने से एक विशेष प्रकार की ध्वनि ऊर्जा निर्मित होती है। 108 बार मन्त्र बोलने से ध्वनि चक्र पूर्ण होता है। यह ध्वनि चक्र जितना अधिक निर्मित होता है उतना ही मन्त्र की शक्ति व प्रभाव बढ़ जाता है। मन्त्र ध्वनि से उठने वाली आवृत्ति इतनी शक्तिप्रद होती है जोकि रोगी या पीड़ित व्यक्ति को नीरोग करती है। यदि आप मन्त्र जाप करने में असमर्थ हैं तो उस मन्त्र को निरन्तर सुनकर भी कुप्रभाव से मुक्ति पा सकते हैं। यदि कर सकते हैं तो अत्यन्त प्रभावी और फलदायी है।
जैन धर्म के पास णमोकार मन्त्र है।
बौद्धों के पास ऊँ मणि पद्मे हुम् मन्त्र है।
सिक्खों के पास एक ओंकार सतनाम् मन्त्र है।
वैसे ही हिन्दुओं के पास गायत्री मन्त्र एवं महामृत्युंजय मन्त्र है।
मृत्यु मिट्टी सदृश है। पंचतत्वों से निर्मित यह देह मृत्तिका मात्र है। मृत्युंजय का अर्थ है जिसने मृत्यु को जीत लिया हो। शरीर मरता है, आत्मा नहीं वह तो अजर व अमर है। जिसने इस नश्वर शरीर में शाश्वत के दर्शन कर लिए और जीवन व मृत्यु के मध्य में, यश व अपयश के मध्य में, लाभ व हानि के मध्य जो अनासक्त भाव से जीवन जीता है वही मृत्युंजय है। महामृत्युंजय मन्त्र अमृतमय है।
शुक्राचार्य मृतसंजीवनी विद्या के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। भृगु पुत्र शुक्राचार्य को कौन नहीं जानता? उन्होंने भगवान् शिव से ही दीक्षा ली थी। मार्कण्डेय भी इसी मृत्युंजय मन्त्र से रक्षित होकर भगवान् आशुतोष शिव से दीक्षा लेते हैं। यमराज भी शिव भक्तों के मन्त्रमय तेजोमय मृत्युंजय रूप को प्रणाम करते हैं।
कहते हैं कि एक से पच्चीस लाख जप करने से यह मन्त्र अपने इष्टलोक तक पहुंचता है और इष्टदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में साधक को सिद्धि मिलती है और उसके ओज-चक्र से एक आभा स्फुटित होने लगती है। आजकल किरलियन फोटोग्राफी से ओज-चक्र देखा जा सकता है।
महामृत्युंजय मन्त्र के जाप से शरीर के मृत कोशिकाएं के स्थान पर नई कोशिकाओं का निर्माण होने लगता है।
यह सत्य है कि महामृत्युंजय मन्त्र के प्रभाव से मृत्य शरीर में चिन्मय के दर्शन होने लगते हैं।
महामृत्युंजय मन्त्र इस प्रकार है-ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
अर्थात् समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान् शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।
यह जान लें कि त्रयम्बकं त्रैलोक्य शक्ति, यजा सुगन्धात शक्ति, महे माया शक्ति, सुगन्धिं सुगन्धि शक्ति, पुष्टि पुरन्दिरी शक्ति, वर्धनम् वंशकरी शक्ति, उर्वा ऊर्ध्दक शक्ति, रुक रुक्तदवती शक्ति, मिव रुक्मावती शक्ति, बन्धनान् बर्बरी शक्ति, मृत्योः मन्त्रवती शक्ति, मुक्षीय मुक्तिकरी शक्ति, मा महाकालेश शक्ति एवं अमृतात् अमृतवती शक्ति की द्योतक है।
इसी प्रकार प्रत्येक वर्ण की अलग-अलग शक्ति होती है जो ब्रह्ममाण्ड में एवं शरीर में स्थित है जोकि ब्रह्माण्ड सदृश है।
आवश्यकता है श्रद्धा, भक्ति व मनोयोग से ध्यान सहित मन्त्र जाप की। अनासक्त भाव से किया गया कर्म साधक को बांधता नहीं है। मन्त्र साधना अनासक्त भाव से जीने की कला है।