समय एक ऐसा सेठ है जिसके सिर पर सामने तो केश हैं और पीछे से खल्वाट(गंजा)है। समय रूपी सेठ को सामने से पकड़ने पर ही वह पकड़ आता है। उसके पीछे दौड़ने पर वह कभी पकड़ में नहीं आता है। स्पष्ट है कि समय को पीछे से पकड़ने का प्रयास करेंगे तो वह पकड़ नहीं आएगा अर्थात् आए हुए अवसर हाथ से निकल जाएंगे और बाद मे बैठकर पछताना ही पड़ेगा।
एक आंग्ल कहावत का भावार्थ है-समय ही धन है। समय को सदैव सामने से पकड़कर प्रत्येक अवसर को हाथ से न जाने दें। भारतीय शास्त्रों में तो महाकाल की महिमा वर्णित है। कहने का तात्पर्य यह है कि समय बहुत बलवान है, उसका सम्मान करना चाहिए जोकि आगे बढ़कर स्वागत करने से होता है। पीठ पीछे तो निन्दा ही होती है। समय की महत्ता तो इसी से ज्ञात होती है कि वह सबको परिवर्तित एवं व्यतीत करता है। वह आयु का भोग करता है अर्थात् आपकी आयु का एक-एक दिन भोगकर समस्त आयु को निगल जाता है। यदि वह प्रतिदिन आपकी आयु का एक दिन भोग रहा है तो आपको भी उस आयु का उचित मूल्य उससे लेना चाहिए, इसी में बुद्धिमानी है।
आपको प्रत्येक दिन का एक-एक क्षण उपयोगी कार्य करते हुए सार्थक बनाना चाहिए क्योंकि यदि आपने कुछ भी नहीं किया तो जो क्षण आपके लिए मूल्यवान होने वाले थे वे व्यर्थ हो जाएंगे। बुद्धिमान का एक घंटा मूर्ख के सम्पूर्ण जीवन के बराबर होता है।
कल को आज और आज को अभी बनाने में ही सार्थकता है। शुभस्य शीघ्रम् की नीति को अपनाते हुए एक-एक क्षण को सार्थक बना लीजिए। उत्तम संयोग की प्रतीक्षा न कीजिए, वह अपने आप कभी नहीं आता है, उसे आज बोएंगे तभी कल उसका फल पाएंगे। सदैव तैयार रहें, मानों अवसर सामने खड़ा है। यह जान लें कि कल का पिता आज है और यदि आज निर्बल होगा तो उसका पुत्र कल कैसे सबल होगा। आग लगने पर आप कुआं खोदने निकलेंगे तो उससे आपका घर नहीं बच सकता। परिस्थिति के पूर्व उसकी तैयारी करने में बुद्धिमानी है। यदि साधनों का संचय आज करने पर ही ठीक अवसर आने पर उसका उपभोग हो सकता है।
हमारे शरीर में नेत्रों को इतनी ऊपर इसलिए रखा गया है कि आप दूर तक देख सकें अर्थात् दूरदर्शी बनने का सन्देश मिलता है। मस्तिष्क नेत्रों से भी ऊपर है इसलिए इसका उपयोग और अधिक करना चाहिए। मस्तिष्क एवं नेत्रों का भरपूर उपयोग करते हुए समय की महत्ता को विस्मरण नहीं करना चाहिए।