यूपी चुनाव में पीएम मोदी का अंदाज जरा बदला नजर आ रहा है. अपनी यूपी की रैलियों में वो वैसी आक्रामकता नहीं दिखा रहे, जैसी उन्होंने बिहार चुनाव में नीतीश-लालू के खिलाफ दिखाई थी. फिर चाहे वो करोड़ों की बोली लगाना हो या डॉ. अंबेडकर की तारीफ करना. इस बार उन्होंने रणनीति बदली है. यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन से टक्कर ले रहे मोदी अखिलेश पर तीखा हमला करने के बजाय मुलायम के रास्ते कान पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. 15 फरवरी को कन्नौज की अपनी रैली में मोदी ने अखिलेश को अतीत की कुछ कड़वी बातें याद दिलाईं. उन्होंने कहा,
‘ये कांग्रेस की गोद में बैठने से पहले जरा 4 मार्च, 1984 को याद कीजिए, जब आपके पिताजी पर कांग्रेस ने इतना गंभीर हमला करवाया था. क्या कभी आपने सुना है कि कुर्सी के मोह में कोई ऐसा भी बन जाता है.’
मोदी यूपी में हुए सपा-कांग्रेस गठबंधन पर निशाना साध रहे थे. दी लल्लनटॉप की ग्राउंड कवरेज में साफ नजर आ रहा है कि सपा और कांग्रेस के साथ आने से बीजेपी की सत्ता की राह मुश्किल हो गई है. स्वाभाविक है कि ऐसे में बीजेपी नेता अखिलेश और राहुल पर सीधा हमला बोलेंगे, लेकिन मोदी यहीं पर चतुराई दिखा रहे हैं. वो मोरल ग्राउंड पर अखिलेश को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं मुलायम पर जानलेवा हमले का वो किस्सा, जिसका जिक्र मोदी कर रहे हैं.
1984 का साल था. मुलायम उस समय यूपी विधान परिषद में विपक्ष के नेता थे. सियासी हालात कुछ ऐसे थे कि मुलायम ने कांग्रेस की नाक में दम कर रखा था. फिर आया 4 मार्च, 1984. मुलायम सिंह यादव अपने पैतृक जिले इटावा से सूबे की राजधानी लखनऊ जा रहे थे. पर रास्ते में ही कुछ अज्ञात हमलावरों ने उनकी गाड़ी पर गोलियां चला दीं. मुलायम की किस्मत अच्छी थी, वो इस हमले में बच गए.
बाद में जांच हुई, तो हमले में कांग्रेस के एक सीनियर लीडर का नाम आया था. इस कांग्रेसी नेता का सरनेम भी यादव ही था. उस समय चौधरी चरण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी ने मुलायम सिंह यादव का समर्थन किया था. इन दोनों नेताओं ने खुले तौर पर कांग्रेस को घेरा था. खुद मुलायम ने भी अपने ऊपर हुए हमले के लिए सीधे कांग्रेस को दोषी माना. बीते दिनों जब यादव परिवार में विवाद चल रहा था, तब एक बार फिर उन्होंने इस हादसे को दोहराया था.
इस हादसे को आधार बनाकर अखिलेश-राहुल को घेर रहे मोदी के लिए एक अच्छी बात ये है कि खुद मुलायम अखिलेश-राहुल गठबंधन से नाखुश हैं. अखिलेश ने जब राहुल को जोड़ीदार बनाया था, उसी समय मुलायम ने उनके हक में प्रचार करने से इनकार कर दिया था. 15 फरवरी को ही वो अपनी छोटी बहू अपर्णा यादव के लिए प्रचार करने गए, लेकिन एक बार भी अखिलेश का नाम नहीं लिया. यही कहा कि अपर्णा की जीत उनके सम्मान की बात है.
देखना रोचक होगा कि पिता पर हमले की इस दलील के जवाब में अखिलेश कौन सा किस्सा निकालेंगे.
पर मुलायम जब 1990 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे, तब उनको कांग्रेस का समर्थन हासिल था. बाद में मुलायम जब डिफेंस मिनिस्टर थे तब भी कांग्रेस ने परोक्ष रूप से समर्थन दिया ही था. तो मुलायम तो खुद ही इस बात को भूल चुके थे. अखिलेश को कहां याद होगा.
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