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01. वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद। अंतस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।। 02. खून मांस भी एक है , जाति योनि भी एक। फिर नरेन्द्र हैं क्यों नही,सभी आदमी एक।। 03. जिस मिट्टी के
रामू! रामू हाॅं बाबू मेहमान आयें हैं मेहमान अच्छऽ बाबू! कहते हुए साथ में कुछ कुर्सियाॅं और बिछौना लिए रामू आता है करते हुए मेहमानों का अभिवादन लगाता है कुर्सियाॅं और बिछौना बोलता है मे
दोस्तों के साथ खेलते हुए पसीने से तरबतर प्यास से व्याकुल एक बच्ची पहुंच जाती है नलकूप पर पीने लगती है पानी बुझाने लगती है प्यास तभी होता है एक सज्जन को उसके दलित होने का आभास आखिरकार उसने