" नशा किसी को शराब का हैं,
नशा किसी को मज़हब का हैं.
कोई बहकता हैं पीके शराब,
बहक रहा हैं कोई ले मज़हब का नाम." (आलिम)
एक गाना हैं शराब चीज़ ही ऐसी है ना छोड़ी जाए , मैं समझता हूँ कि मज़हब चीज़ ही ऐसी है ना छोड़ी जाए. कोई शराब पीके जी बहला रहा है तो कोई मज़हब का ज़हर पीके. अब तो पढ़े-लिखे भी मज़हबी नशा कर मस्त है.