कॉलेज के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि ज्योति मुर्मू जो बोकारो की जिलाधिकारी के पद पर पिछले महीने ही नियुक्त हुई थी।
अपने भाषण में उन्होंने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
अचानक ऑडिटोरियम से आवाज आई ,मैडम हम आपके संघर्ष के बारे में जानना चाहते हैं।हमने सुना है ,आपके लिए यह यात्रा आसान नहीं थी।
पूरे ऑडोटोरियम में कई आवाजें गूंज उठीं _हां मैडम आपका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है।
ज्योति ने चश्मा सरकाया और कहना शुरू किया।बहुत लंबी कहानी है,आप सब सुनोगे।
हां मैडम ,पूरा ऑडिटोरियम गूंज उठा।
मेरा जन्म गुमला के एक गांव के आदिवासी परिवार में हुआ था। मां जो कमा कर लाती,उसे छीन पिता दारू पी लेते,अगर देने में आना कानी करती तो उसे बहुत मारते।
मैं बहुत छोटी थी ,तकरीबन ,7 साल की।
एक दिन मेरे पिता ने मां को इतना मारा कि वह भगवान को प्यारी हो गई।
पुलिस आई और पिता को पकड़ कर ले गई।
मैं अनाथ हो गई।दिन भर घर में पड़ी मां को याद करके रोती।मां का आंचल एक बच्चे को संबल देता है।
एक दिन बगल के चाचा चाची मुझे अपने घर में ले गए।
चाचा के घर शहर से कुछ लोग आते थे,मुझे पता नहीं कि वो लोग कौन थे ,लेकिन मेरी कई सहेलियों को वे लोग शहर ले गए थे। उनके मां ,पिता को हर महीने पैसे आते थे।
एक दिन चाचा ने मुझे भी उनलोगो के हाथ बेच दिया।
मुझे एक अंकल और आंटी ट्रेन में बिठा कर दिल्ली ले आए।मुझे सबकुछ बड़ा अजीब लग रहा था।मेरा गांव मुझसे छूट गया वहां की मिट्टी ,जंगल,खेत सबकुछ एक पल में छूटता गया।
दिल्ली मुझे पता नहीं था ये कहां है,बड़े बड़े घर,रास्ते में मोटर,बस,कार का शोर, सब कुछ मुझे नया लग रहा था। मैं भयभीत थी,पता नहीं कहां ये मुझे ले जा रहे हैं।
अचानक एक बड़े बिल्डिंग के पास वो अंकल ,आंटी रुके ,एक वर्दी वाले आदमी के पास कुछ बताया ,उसने हमें जाने दिया।
फिर हमलोग एक डिब्बे में बंद हुए ,अंकल ने बटन दबाया,और खूब ऊंचे मंजिल पर पहुंच गए,शायद यह 6 मंजिल थी।
अंकल ने दरवाजे की घंटी बजाई ।अंदर फैशनेबल मेमसाहब निकलीं मैं बाहर खड़ी रही वो और आंटी अंदर जाकर क्या बात करती हैं ,मुझे नहीं मालूम ।थोड़ी देर में उन्होंने मुझे अंदर बुलाया।
अंकल ने मुझसे कहा ,_ज्योति ,ये तुम्हारी मेमसाहब हैं,।घर में एक 4साल का बच्चा ,और साहब हैं ।कुल 3जनों का परिवार था,उनका।चाचा ने कहा अब तुम यहीं रहोगी,साहब और मेमसाहब दोनो नौकरी करते हैं और तुम्हें इनके बच्चे आरव का ख्याल रखना है।
मैं क्या थी,न मां का साया न पिता ,कोई भी तो नहीं था।मैं गूंगी , बहरी बन सिर्फ हालात से समझौता ही कर सकती थी।
मैं नहीं जानती थी किस्मत क्या होती है। बस जिसने जो कहा ,वो करती रही ।हर हाल में खुश रही।लेकिन उस घर में मुझे छोटी छोटी बातों पर पीटा जाता ।
एक दिन उनका बच्चा गोद में मुझसे उठाने की जिद करने लगा ,मैने उसे उठाया तो ,उसका वजन नहीं संभाल पाई ,और वो गिर गया,ज्यादा चोट नहीं आई थी लेकिन इस दिन मेमसाहब ने मुझे बहुत मारा। मुझे असहनीय पीड़ा हो रही थी ।मैं रात भर रोती रही।लेकिन उनलोगो को मेरे उपर जरा भी दया नहीं आई।
सुबह जब मुझे मेमसाहब ने नीचे दुकान से ब्रेड लाने भेजा तो, मैं फिर रुकी नहीं,मैं भाग गई।
उन पैसों से स्टेशन पहुंची । मैं घर जाना चाहती थी।लेकिन मुझे कुछ भी पता नहीं था, और दूसरा वहां मेरा था ही कौन?
अगर वहां किसी तरह पहुंच भी जाती तो चाचा ,चाची फिर बेच देंगे।इसी उधेड़ बुन में मैं लगी रही।
भूख बहुत लगी थी। बचे पैसे से कुछ खाया।
फिर वही घूमती रही ,कुछ समझ में ही नही आ रहा था।
तभी गश्त करती पुलिस वहां आ गई, मुझे अकेली देख उन्होंने मुझसे नाम ,पता पूछा।मैं डरी हुई थी ,मैने कहा मेरा कोई नही है।
वो मुझे थाने ले गए।वहां से मुझे अनाथाश्रम भेज दिया गया।
मुझे वहां घर तो मिल गया था। हमें स्कूल भेजा गया।लेकिन अनाथाश्रम की अधीक्षिका सबको बहुत मारती थी।
लेकिन पढ़ने को मिल रहा था,इसलिए सब कुछ सहनीय था।
मैं खूब मन लगा कर पढ़ती ।सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था,मेरी बदकिस्मती पीछा नहीं छोड़ रही थी।एक टीचर ने मेरे साथ गलत काम किया ,मैं उस समय कुछ नहीं जानती थी,आज मां अपनी बेटियों को गुड टच, बैड टच समझाती हैं,पर मुझे कौन बताता।
उस टीचर ने मुझे धमकाया था, कि मैं अपना मुंह न खोलूं। मैं चुप ही रही।
लेकिन मैं प्रेगनेंट हो गई,उस समय मैं नवीं कक्षा में थी। धीरे धीरे मेरा पेट उभर आया,एक महिला टीचर ने मुझे टोंका ,और सारी बात बिना डरे बताने को कहा।
मैने सारी बात उनको बताई,तब वो पुलिस के पास ले गईं और वहां मेरी एफआईआर दर्ज की गई ,और वो टीचर गिरफ्तार हुआ।
मुझे दूसरे आश्रम में भेज दिया गया क्योंकि 5महीने का गर्भ था , गर्भपात रिस्की था। नियत समय पर वहां मैने एक बच्चे को जन्म दिया।
उसके बाद उस बच्चे को किसी अच्छे परिवार को दे दिया गया।आज भी मैं उससे मिलती हूं।
मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।हर परीक्षा में अव्वल रही।
ग्रेजुएशन के बाद मैने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की रेजिडेंशियल निशुल्क कोचिंग अकादमी ज्वाइन की।
मेरी मेहनत रंग लाई ,मेरा सिलेक्शन प्रशासनिक सेवा में हो गया। मैंने पूरे देश में सातवीं रैंक हासिल की थी।हर अखबार और न्यूज चैनल की सुर्खी थी।ज्योति मुर्मू के संघर्ष को सिर्फ ज्योति ने शिक्षा के बल पर जीता।
मैंने परिस्थितियों से समझौता जरूर किया ,लेकिन हार नहीं मानी ,अपनी मंजिल पाई।
और इस मुकाम को हासिल कर आज आपलोगों के बीच हूं।
पूरा ऑडिटोरियम जो इतने समय तक शांत था , जिसमें एक सुई भी गिरती तो आवाज होती ,जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी।सब अपनी अपनी सीट से उठ खड़े हुए,एक नायिका के लिए।