चुनाव का समय नजदीक आ गया था,नेताजी जोड़ तोड़ की राजनीति में लगे थे,टिकट का बंटवारा भी करना था।
नेताजी लॉन में विपक्षी नेता को धमका रहे थे।तभी खबर आई कि कलुआ डकैत इधर ही आ रहा है।
नेताजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी ,वो थर थर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगे।सब जल्दी जल्दी छुपने की जगह तलाशने लगे।
तभी कलुआ डकैत का प्रवेश हुआ,नेता जी धोती उठा भागने लगे।लेकिन ये क्या?न कोई गोली की आवाज न चेतावनी की जोरदार आवाज।
उन्हें लगा कोई उनका पैर पकड़े हुए है,नीचे सिर करके देखा तो कलुआ ।
ये क्या??
आंखें मींच कर देखा ,खुद को चुटकी काट कर देखा ,कलुआ ही था।
उन्होंने घिघियाते हुए कहा ,अरे भाई मेरा पैर तो छोड़ो_,का चाहिए तुमको ?
कलुआ उठा ,हाथ जोड़े ,सर झुकाए।
नेताजी हमहुं को अपनी शरण में ले लो।
क्या? _नेता जी ने कहा।
हां ,आप हमको सरेंडर करा के पार्टी का टिकट दे देना।
फिर देखना आपको हम मुख्यमंत्री बना कर छोड़ेंगे।
नेता जी सोच में पड़ गए,सोचने लगे बहुत सही मौका है ,अपराध और राजनीति का चोली दामन का साथ है।
कुछ दिनों बाद कलुआ उर्फ कालीचरण सफेद कुर्ते पायजामे में हाथ जोड़े ,नेता जी के साथ पोस्टर में दिख रहा था।