निशब्द के शब्द -धारावाहिक- तीसरा भाग
तीसरा भाग
काफी देर के उपचार के बाद मोहित के चाचा को जब होश आया तो उन्होंने अपने
चारों तरफ मोहित के पिता, अपने दोनों लड़कों और अन्य साथियों को बैठे हुए
विचारमग्न देखा. काफी देर के पश्चात जब वे कुछ सामान्य से हुए तब भी नहीं
समझ पाए थे कि उन्हें अचानक से हुआ क्या था? शरीर पर भी किसी चोट और हथियार
के निशान तक नहीं थे. सारे बदन पर किसी तिनके तक की कोई भी खरौंच नहीं थी.
फिर उनके भाई और मोहित के पिता ने डाक्टर को बुलाया. बाकायदा पूरी जांच
करवाई. मगर फिर भी डाक्टर किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुँच सकाथा. उसने कुछेक
ताकत की दवाएं और विटामिन्स दिए और आराम करने की हिदायत देकर चला गया.
फिर बहुत से दिन मोहित के परिवार वालों के इसी उहापोह में बीत गए. इस बीच
किसी ने भी मोहित से कुछ भी नहीं कहा. मगर फिर भी मोहित के चाचा के दिमाग
से इन सारी बातों का एक शब्द भी बहर नहीं जा सका. कारण था कि, वे वर्तमान
की ना सोच कर अपने भविष्य के बारे में सोचकर बे-हद चिंतित थे. सबसे अधिक
चिंता उन्हें मोहित के लिए थे. वे उसकी बातों को सोच-सोचकर पसीने-पसीने हो
जाते थे. उन्हें मालुम था कि मोहिनी की हत्या और उसकी योजना के वे ही सरगना
थे. वे यह भी जानते थे कि, मोहित उन पर संदेह नहीं करता है बल्कि, पूरा
यकीन करता है कि मोहिनी की हत्या उनके ही द्वारा हुई है. अगर किसी दिन यह
साबित हो गया तो उन्हें फांसी के तख्ते से कोई भी नहीं बचा सकता है.
हांलाकि, यह सारी योजना में मोहित के पिता का भी हाथ है. वे नहीं चाहते थे
कि एक दलित परिवार की लड़की उनके उच्च स्तरीय परिवार की बहु बने. इसीलिये वे
अपने बेटे पर तो हाथ डाल नहीं सकते थे, पर एक गरीब दलित की लड़की को मोहित
के मार्ग से हटाना आसान था. सो इस समस्या को जिस तरह से हमेशा के लिए शांत
किया जा सकता है, वह यही कि, अगर खुद की जान बचानी है तो फिर मोहित को ही
इस मार्ग से हटाना पड़ेगा. वे यह भी जानते थे कि, मोहित उनका भतीजा है और
उनके भाई की एकलौती सन्तान भी, अपने भाई को बिना कुछ भी बताये वे मोहित को
भी रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगे.
तब एक रात, जब वे
पंडाल में बैठे हुए अपने साथियों से गपशप कर रहे थे तो उन्होंने दूसरे दिन
उन्होंने इस कार्य को अंतिम अंजाम देना उचित समझा. उन्होंने अपने साथियों
को जो संख्या में पूरे छंटे हुए अपने इलाके के माने हुए बदमाश थे, से कहा
कि, वे लोग बहाने से मोहित को जीप में बैठाकर, अपने खेतों की निगरानी आदि
के बहाने से ले जाएँ और अन्धेरा होने तक वहीं ठहरे रहें. फिर रात के आठ बजे
जो एक्सप्रेस गाड़ी उनके खेतों के पास से गुज़रती है, उसकी पटरियों पर उसे
बाँध कर ड़ाल दें. काम तमाम हो जाने के बाद यही कहा जाएगा कि, मोहित ने
मोहिनी के दुःख में रेल की पटरी पर लेटकर अपनी आत्महत्या कर ली है. इतना सब
कुछ समझा-बुझाकर मोहित के चाचा ने अपने साथियों को विदा किया और बड़े ही
इत्मीनान के साथ वे सोने चले गए.
दूसरे दिन का सूरज अभी ढंग
से उगा भी नहीं था कि, दयापुर गाँव, जहां का मोहित रहनेवाला था, सारे गाँव
में हाहाकार मच गया. एक पल भी नहीं बीता होगा कि, मोहित के चाचा की हत्या
की खबर सारे गाँव में जंगल में लगी आग के समान एक कोने से लेकर दूसरे कोने
तक और आस-पास के गाँवों तक में फैल गई. किसी ने स्त्री की साड़ी से ही उनके
निवाड़ के भारी-भरकम पलंग में ही उनकी गर्दन बाँध कर उनकी जान ले ली थी.
मरने के बाद उनका शरीर बर्फ के समान अकड़ चुका था. आँखें और जीभ भयानक रूप
से बाहर निकल आई थीं. सारा चेहरा इसकदर बीभत्व हो चुका था कि जो भी देखता
था चीखता-चिल्लाता दहशत के मारे बाहर भाग खड़ा होता था. उनकी पत्नी तो उनका
भयानक रूप देखकर अपने ही स्थान पर बेहोश हो चुकी थी. सबसे विचित्र बात जो
इस कत्ल में हुई थी वह यही कि, उनका गला दबाने के लिए जो साड़ी इस्तेमाल की
गई थी, वह वही साड़ी थी जो उनकी पत्नि पहना करती थी. लेकिन, हां, हत्या का
तौर-तरीका बिलकुल वही था जो मोहिनी की हत्या के लिए अपनाया गया था. अर्थात,
गला दबाने से उनके मुख से जो रक्त निकल रहा था उसको जमा करने के लिए पानी
पीने के एक पीतल के लोटे को रख दिया गया. सारा नज़ारा इसकदर भयानक था कि, जो
भी देखता था वही देखकर हैरान हो जाता था. इसके अतिरिक्त जिस कमरे में
उन्हें मारा गया था उसमें एक ही दरवाज़ा आने और जाने के लिए था और वह भी
अंदर से बंद था. इसके अतिरिक्त कमरे में एक एक वर्ग फीट के दो रोशनदान थे,
जिनमें लोहे की सलाखें लगी हुई थीं, और उन पर भी किसी तरह के निशान और
चिन्ह नहीं थे. मोहित के चाचा के अन्य साथियों का संदेह था कि इस हत्या में
मोहित का ही हाथ हो सकता है. मोहित के पिता भी अपने भाई की इस बीभत्स
मृत्यु को देख कर जैसे अचानक से जैसे जमीन में अंदर तक धंस चुके थे. उनके
मुख से केवल कुछेक ही शब्द बाहर आते थे कि, ' हे, ईश्वर ! क्या इस घर को
किसी की बला लग चुकी है?'
फिर थोड़ी ही देर में पुलिस आई.
स्थान और तमाम अन्य बातों का मुआयना किया गया और लाश का पंचनामा बनाकर
पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय अस्पताल में भेज दिया गया. मोहित को भी पुलिस
अपने साथ ले गई थी मगर कुछेक बातों के सवाल-जबाब करने के बाद एक चेतावनी
देकर उसे घर भेज दिया था. बाद में पोस्टमार्टम आदि के पश्चात दूसरे दिन
मोहित के चाचा का शरीर चिता की अग्नि में सुपुर्द कर दिया गया. फिर उस दिन
सारे घर-परिवार और साथ ही सारे गाँव में एक जानलेवा सन्नाटा पसरा रहा. ऐसे
में घर में चूल्हा जलने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था. केवल गाँव के अन्य
परिवारों ने मोहित के परिवार आदि के लिए भोजन आदि का प्रबंध किया था.
मोहित अभी तक अपने कमरे में ही बंद था. उसका बाहर जाने का मन ही नहीं करता
था था, क्योंकि वह ज़रा भी भार गाँव वालों के समक्ष आता था तो उसे लगता था
कि, जैसे हरेक गाँव वाले की नज़र उसे ही, उसके चाचा के कातिल के अंदाज़ से
घूर रही है. वह भी चुपचाप बैठा हुआ यही सब सोच रहा था कि तभी उसे मोहिनी की
आवाज़ सुनाई दी,
'तुम कैसे आंसू बहा रहे हो, उस कमीने की मौत पर?'
'आंसू नहीं बहा रहा हूँ मैं.'
'तो फिर?'
'सोच-सोच कर हैरान हूँ मैं.'
'क्यों?'
'यह सब कैसे हो गया?'
'मैंने मारा है उसे.'
'तुमने?'
हां ! मैंने.' मोहिनी दृढ़ता से बोली तो मोहित के सारे होश उड़ गये.' वह बे-हद हैरानी से बोला,
'क्या पूछ सकता हूँ कि तुमने मेरे चाचा को इसी लिए मारा है क्योंकि, उन्होंने तुम्हारा गला घोंटा था?'
'नहीं ! यह बात बिलकुल भी नहीं है. मैंने तो तुम्हारा भोला चेहरा देख कर उसे मॉफ भी कर दिया था, लेकिन ...'
'लेकिन, क्या?'
'मैं
उसे नहीं मारती तो कल तुम्हारी लाश रेलवे लाइन की पटरी पर कटी-फटी पड़ी
होती. उसने तुमको भी रास्ते से सदा को हटाने का कार्यक्रम बना लिया था.'
'?'- सुनकर मोहित हैरान हो गया.
'तुम यह बात कैसे कहती हो?'
'अब तुम ही बताओ कि, कल तुम अपने चाचा के साथ खेतों की तरफ जाने को थे या नहीं?'
'हां, कार्यक्रम तो था.'
'यह
कार्यक्रम तुम्हारे चाचा जब पंडाल में अपने दो अन्य बदमाश लोगों के साथ
बना रहे थे, तब मैं उनकी बातें सुन रही थी. वे लोग तुम्हे ले जाते और शाम
के आठ बजे जब दीनापुर एक्सप्रेस वहां से गुज़रती तो वे तुम्हें बांधकर पटरी
पर डाल देते. फिर सारे गाँव वाले यही समझते कि तुमने मेरे वियोग में
आत्महत्या कर ली है.'
'?'- मोहित को लगा कि अचानक ही कोई
पीला-चितकबरा कोबरा नाग उसके सीने पर से गुज़र गया है. इस प्रकार कि पल भर
में ही उसका सारा बदन पसीने-पसीने हो गया. वह तुरंत ही दोनों हाथों से अपना
सिर पकड़कर बैठ गया. उसे यूँ सिर पकड़कर बैठते देख मोहिनी ने टोका. बोली,
'यूँ सिर पकड़कर मत बैठा करो. सारे वातावरण में मनहूसियत आ जाती है.'
'अब इससे भी अधिक कोई और मनहूसियत होगी. मेरी तो दुनिया ही उजड़ चुकी है.'
'इससे भी अधिक और मनहूसियत हो सकती है.'
'मैं समझा नहीं?'
'अपने
चाचा की मृत्यु के बाद मत सोचना कि, खेल खत्म हो चुका है. उनके दोनों लड़के
केवल तुम्हीं पर 'टार्गेट' कर रहे हैं. मैं उनकी बातें सुनती रहती हूँ.'
'तो अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं? मोहित बड़े ही निराश स्वर में बोला तो मोहिनी ने उसे उत्तर दिया और कहा कि,
'जो भी होगा, मैं तुमको बताती रहूंगी.' यह कहकर मोहिनी जाने लगी तो मोहित ने उससे पूछा. कहा कि,
'तुम कहाँ जाने लगीं?
'किचिन
में. तुम्हारे लिए चाय लेने. गर्म चाय पिओगे तो तुम्हारा थका हुआ मन भी
अच्छा हो जाएगा.' कहते हुए वह अचानक ही लोप हुई तो मोहित केवल दरवाज़े के
खुलते-बंद होते हुए पट ही देखता रह गया.
मोहिनी ने किचिन के बाहर, आँगन में ही खड़े होकर, मोहित की आवाज़ में, कहा कि,
'गंगिया ! एक प्याला चाय ले आना मेरे कमरे में.'
'अभी
बनाकर लाती हूँ, छोटे मालिक जी.' तब तक मोहिनी पुन: मोहित के कमरे में आकर
आकर बैठ गई. मोहित भी अपने स्थान पर बैठा रहा. फिर थडी ही देर बाद अपने
स्थान से उठते हुए बोला कि,
'मैं अभी आता हूँ.'
'कहां चले?'
'दिन भर से इन्हीं कपड़ों में बैठा हूँ. 'चेंज' करके आता हूँ. वैसे भी अब शाम हो चली है. कहीं जाना भी नहीं है.'
'और अब कहीं जाओगे भी नहीं, बगैर मुझसे पूछे हुए?' मोहिनी ने कहा तो मोहित उसे आश्चर्य से देखने लगा.
'?'-
ऐसे संशय से मुझे मत देखो. तुम्हारे ही परिवार के लोग तुम्हें जान से
मारने पर तुले हुए हैं. इसलिए तुम्हारी सुरक्षा करना मेरा प्यार ही नहीं
बल्कि, मेरा कर्तव्य भी है.'
'कुछ समझ में नहीं आता है. . .?' मोहित बड़े ही निराश होकर बोला.
'क्या समझ में नहीं आ रहा है'
'ऐसे, कब तक, क्या और कैसे चलेगा? तुम भी मेरी दुनियां छोड़कर जा चुकी हो और यहाँ मेरे ही अपने मुझे जीने नहीं देते हैं.
'मुझे
खुद भी नहीं मालुम है. सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दो. वही जो कुछ करेगा, वह सब
अच्छा ही होगा.' मोहिनी भी कहते हुए उदास हो गई. तो मोहित बोला,
'हम दोनों इस जन्म में तो मिल नहीं सके और आत्मिक दुनियां में भी मिलन का कोई भरोसा नहीं हैं.'
'क्यों नहीं है? तुम्हें किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा.' मोहिनी ने कहा तो मोहित उसे आश्चर्य से देखने लगा. तब मोहिनी उससे बोली,
'मैंने
वहां आत्माओं के संसार में देखा है कि, वहां पर कोई सोने से भी अधिक चमकता
हुआ कोई राज्य है. वहां का राजा बहुत दयालु और प्रेमी है. लोग उसे सारी
दुनियां का विधाता और ईश्वर मानते हैं. कहते हैं कि वही इस संसार पर राज्य
करता है. मैं उससे बिनती करूंगी कि, वह मुझे फिर से तुम्हारे पास भेज दे.'
'ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है? कोई मरकर भी दोबारा आया है?'
'हो
तो नहीं सकता है. लेकिन अगर वह परमेश्वर है, दुनिया का चलनेवाला है, जीवन
और मृत्यु पर अगर उसका अधिकार तो वह यह सब कर सकता है.' मोहिनी ने कहा.
'वह तो सब ठीक है, लेकिन कोई इस संसार का चलन कैसे बदल सकता है?' मोहित ने कहा.
'क्यों
नहीं बदल सकता है? जब सीता जी भूमि से जन्म ले सकती हैं, अपनी परीक्षा
देने के लिए पुन: भूमि में समा सकती हैं, ईसा मसीह मरने के बाद भी पुन:
जीवित हो सकते हैं, दुष्ट का नाश करने के लिए नरसिंह अवतार ले सकते हैं, तो
फिर वे मुझ पर दया क्यों नहीं कर सकते हैं?'
'?'- मोहिनी, तुम्हारी
दुनियां मेरे संसार से बहुत अजीब होगी. उसे तुम ही बेहतर जानती हो. मेरी तो
समझ में कुछ भी नहीं आता है. मैं अभी आया.' कहते हुए मोहित कमरे से निकलकर
बाहर चला गया.
उसके जाने के पश्चात मोहिनी अपने ही स्थान पर
बैठी रही. कमरे में एक अजीब ही सन्नाटा पसर गया. तभी गंगिया चाय की ट्रे
लेकर आई और मोहित के कमरे का द्वार खटखटाते हुए अंदर प्रविष्ट होते ही
बोली,
'लो, छोटे मालिक. गर्मा-गर्म चाय.' मगर जब कमरे में किसी को भी न पाया तो खुद से बोल बैठी,
'हाय रे? यहाँ तो कोई भी नहीं है. छोटे मालिक ने ही तो चाय बनवाई थी. अब कहाँ गायब हो गये?'
तभी
अचानक से मोहित ने कमरे में प्रवेश किया तो गंगिया पहले से और भी अधिक
भयभीत हो गई. इस प्रकार कि, उसके मुख से एक चीख से निकल गई.
'क्या हुआ?' मोहित ने गंगिया को डरते हुए देखकर कहा तो वह उसे आश्चर्य से अपना मुंह फाड़कर देखने लगी.
'ऐसे क्यों देखती है मुझे? मैं कोई भूत हूँ क्या?'
'आप
तो नहीं, पर आपके कमरे में जरुर कोई गड़बड़ है. चाय रख दी है. मैं जाती
हूँ.' कहते हुए गंगिया शीघ्रता से भाग गई तो मोहित केवल मुस्कराकर ही रह
गया. साथ ही मोहिनी भी मुस्कराने लगी.
मोहित ने चाय निकाली और फिर उसे पीना शुरू करता इससे पूर्व ही मोहिनी ने उससे कहा कि,
'जहां,
मैं रहती हूँ, वह आत्माओं का संसार कहलाता है. वह एक राज्य है- बिलकुल
सोने से मढ़ा हुआ सा. वहां हर तरफ रोशनी ही रोशनी है, लेकिन मुझ जैसी भटकती
हुई रूहों को उसमें जाने की इजाज़त नही है. उसका राजा सुना है कि वह बहुत ही
दयालु है.'
'तो- तुम कहना क्या चाहती हो?'
-क्रमश: