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नि : शब्द के शब्द - भाग 2

3 नवम्बर 2022

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    नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक- दूसरा भाग

   कहानी/शरोवन

   अब तक आपने पढ़ा है कि,

      
मोहिनी को को झांसा देकर, मोहित के परिवार वालों ने निर्ममता से मार कर,
अंग्रेजों के पुरातन कब्रिस्थान में वर्षों से पुरानी एक अंग्रेज स्त्री की
कब्र में दबा दिया था और पुलिस में उसकी गुमशुदगी रिपोर्ट लिखा कर सारे
मामले को दबाने की कोशिश कि जा रही थी. मगर, अपने गम में मारे मोहित को यह
सब कुछ नहीं मालुम था. वह तो अपनी मंगेतर मोहिनी के अचानक गायब हो जाने के
दुःख में परेशान था. तब उसकी दशा पर परेशान होकर मोहिनी की भटकती हुई आत्मा
ने एक दिन उसको दर्शन दिया और सारी बात बता दी. मोहित यह सब जानकार जहां
आश्चर्य से भर गया था वहीं वह मोहिनी के मारने वालों अर्थात अपने ही चाचा
और परिजनों के विरुद्ध हो गया. इस पर उसके ही चाचा ने पहले तो मोहित को जेल
में डलवा दिया, मगर बाद में वह खुद मोहित को ही जान से मार डालने की योजना
बनाने लगा. तब मोहिनी की आत्मा ने मोहित को बचाने की खातिर उसके चाचा ही
को एक दिन रात में सोते समय मार डाला. उसके बाद क्या हुआ? यह जानने के लिए
अब आगे पढ़िये;


                                                                     निशब्द के शब्द     भाग - दो

 झूठी कसम

      
'मैं, समझता हूँ कि, बीस दिन जेल की रोटियाँ खाने और सलाखों में बंद रहने
के बाद अब तक तुम्हारे सिर से मोहिनी के प्रेम का भूत उतर चुका होगा?'

'मोहिनी
मेरी मंगेतर और मेरी होने वाली पत्नि थी, इतना ही नहीं, वह क़ानून, समाज और
धर्म, तीनों ही तरीके से आपके घर की बहु थी, उसे आप लोगों ने बड़ी ही
निर्ममता से काटकर एक मुर्दे की कब्र में दफना दिया है. इतना अधिक आप लोगों
ने अमानवीयपन और पशुता दिखाई कि उस मरनेवाली का कायदे से अंतिम संस्कार भी
करने का अवसर नहीं दिया.  ऐसी देवी स्वरूप को मैं मरने के बाद भी नहीं भूल
सकूंगा.'

       मोहित ने अपने उदास स्वरों में कहा तो उसके चाचा के
दिमाग का पारा सातों आसमान पर जा पहुंचा. वे तुरंत ही अपनी आँखें चढ़ाते
हुए मोहित से जैसे दहाड़ते हुए बोले,

'तुम हम लोगों पर उस दो छोकरी, अनुसूचित जाति की लड़की के खून का इलज़ाम लगा देना चाहते हो?' 

'इलज़ाम
लगा नहीं रहा हूँ, बल्कि इलज़ाम है. मैं अपनी मां के सिर पर हाथ रख कर और
गीता को साक्षी जानकार सरे-आम यह सकता हूँ कि आप लोग ही मोहिनी के कातिल
हैं,' मोहित ने जैसे चिल्लाते हुए कहा तो उसके चाचा भी चिल्लाए,

'तुम हमारे ही खिलाफ, अपने पिता के ही विरोध में गवाही दोगे?  अंजाम जानते हो?'

'ज़्यादा से जायदा मेरी भी मोहिनी के समान मौत.'

'तुम हमारे रहम और प्यार का नाजायज़ लाभ उठा रहे हो?'

'नाजायज़ लाभ तो आप लोग मुझ से उठा रहे हैं, क्योंकि मैंने अभी तक आपके विरोध में नामदर्ज रिपोर्ट नहीं लिखवाई है.'

'खामोश
! तुम्हें अपने खानदान और मर्यादा का ज़रा भी लिहाज नहीं है. तुम तो जेल
में ही ठीक थे. दुःख होता है कि, हमने तुम्हारी ज़मानत करवा के फिर कोई भूल
कर दी है?'

'अपनी पहली भूल का प्रायश्चित कर लीजिये, मैं खुद ही पीछे हट जाउंगा.'

'तुम्हें मालुम है कि, हम तुम पर फिर से मेहरबान हो सकते हैं.'

'शायद
इसलिए कि मैं ही अकेला अपने खानदान का इकलौता वारिस हूँ. आपके पास भी कोई
सन्तान नहीं है और मेरे पिताजी अपने इस नितांत अकेले परिवार के चिराग को
सहज ही बुझने नहीं देना चाहेंगे?' मोहित बोला तो उसके चाचा भी जैसे किसी
गम्भीर चक्र के घेरे में आ गये. वे थोड़ा नरमी से
बोले,                                                                                            
 

'तुम्हारे पिता को अभी तक तुम्हारी इन बातों के बारे में कुछ भी
नहीं मालुम है. तुम अपने आपको नर्म कर लो, हम भी भी नर्म हो जायेंगे.'

आप
भी मोहिनी की निर्मम हत्या का दोष स्वीकार कर लो. आपके इस अपराध का कोई भी
चश्मदीद गवाह नहीं है, इसलिए 14-20 साल की जेल काटकर बाहर आ जाना. यदि आप
ऐसा करेंगे तो मुझे भी शान्ति मिल जायेगी और मोहिनी की भटकती हुई आत्मा को
मुक्ति भी.'

'तुम्हें कैसे मालुम कि मोहिनी की हत्या हमने ही की है?' उसके चाचा ने पूछा.

'मुझे यह सब खुद मोहिनी ने ही आकर बताया है.'

'मोहिनी ने? वह तो मर चुकी है?'

'आपको लिए मर चुकी है, लेकिन मेरे लिए अभी भी जीवित है.' मोहित बोला तो उसके चाचा चिल्लाए,

'तुम्हारा दिमाग तो सही है न? वह अगर जीवित है तो दिखाई क्यों नहीं देती है?'

'मुझे तो दिखाई देती है.'

'कहां ?'

'यहीं. इसी कमरे में है वह और हमारी बातें भी वह सुन रही है.'

'?'-
इस कमरे में. कहां?' कहते हुए हुए उसके चाचा कमरे में चारों तरफ ताकने
लगे. लेकिन जब उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आया तो वे अपने साथ में खड़े हुए अन्य
दो जनों से धीरे से बोले,

'सचमुच इस लड़के का दिमाग उस दलित लड़की की आत्मा ने खराब कर रखा है.'

'मेरा
कोई भी दिमाग नहीं फिर गया है. आप अपने दिल से मेरे सिर पर हाथ रख कर कहें
कि मोहिनी को आपने नहीं मारा है?' मोहित ने अपने चाचा की बातों को सुना तो
कह दिया.

'अगर मैं ऐसा कह दूँ तो तुम विश्वास कर लोगे और अपनी जिद से हट जाओगे?'

'हां.'

तो
ठीक है. मैं कसम खाता हूँ. यह कहते हुए वे धीरे से मोहित के पास आये और
जैसे ही उन्होंने अपना हाथ उसके सिर पर रखा कि अचानक से ऐसा लगा कि जैसे
किसी ने अचानक ही उनके सिर पर भयानक प्रहार से कोई भारी हथोड़ा मार दिया हो.
वे बहराते हुए अचानक ही सीमेंट की दीवार से जा टकराए और पल भर में ही
बेहोश हो गये. ये सब देख कर उनके साथ के आये हुए दोनों आदमी भी मारे भय के
कांपने लगे. जैसे-तैसे उन दोनों ने मोहित के चाचा को उठाया और वहीं पड़ें
हुए पलंग पर लिटा दिया. बाद में मोहित भी चुपचाप अपने कमरे में आ गया. जैसे
ही आया तो अपने ही बिस्तर पर उदास, दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर बैठी
हुई मोहिनी को देख कर आश्चर्य तो नहीं कर सका, पर हां उसकी उदासी देख कर
जैसे उसका भी कलेजा शरीर से बाहर आ गया. उसने सोचा कि, क्या सचमुच ही प्यार
करनेवालों को ज़माना ऐसी ही सज़ाएँ दिया करता है?- अधूरी हसरतों के साथ बुझे
हुए दिनों में अपना दम तोड़ते हुए अफ़साने- कितनी ही प्यारी-प्यारी, नाज़ुक,
फूलों से भी अधिक नादान कल्पनाएँ होती हैं, दो पवित्र प्यार के गीत गाते
हुए दिलों की धडकनों में. दिल यही करता है कि बस, केवल बस, मिलन की आस
देखते हुए ये प्यार के दो नैन सदा-सदा के लिए एक साथ बंद हो जाएँ. मगर इन
चार नैनों में से जब दो आँखें समय से पहले ही दुनियां बंद कर देती है तो
फिर दिल को समझाना और बहलाना किसकदर मुश्किल हो जाता है. यही दशा मोहिनी की
भी थी. मोहित से बिछुड़कर अब वह उस दुनियां की सम्पत्ति थी जिसे जानते तो
सब ही हैं, पर मानने से इनकार सब ही कर देते हैं. एक ऐसी दुनियां,
शरीरविहीन आत्माओं का संसार- जहां आत्माएं रहती हैं, मिलती हैं, सोचती हैं,
आती हैं, जाती हैं, बातें भी करती हैं मगर सांसारिक दुनियां में किसी भी
तरह का हस्तक्षेप अपनी मर्जी से नहीं कर सकती हैं. यदि करती भी हैं तो चोरी
और छुपकर ही. अगर पकड़ी गईं तो सजा भी मिलती है. यही दशा मोहिनी की भी थी.
अपना प्यार लुटा कर भी वह मोहित के गले में अपनी प्यार की दो बाहें डालने
के लिए तरस गई थी. अब एक बार भी वह उसका हाथ थामकर उसके साथ कदम मिलाकर
नहीं चल सकती थी. केवल मोहित को वह देख भर सकती थी. देखते हुए मात्र अपने
दिल पर भारी बोझ रखते हुए फिर से तरस सकती थी.

       मोहित के आते ही मोहिनी उठ कर जाने लगी तो मोहित ने उसे आश्चर्य से टोका,

'मोहिनी !'

'मैं जाती हूँ. कल फिर से आऊँगी.'

'तुमने मेरे चाचा को मारा?'

'हां मारा था. शुक्र करो कि, वह भेड़िया मरा नहीं.'

'चाचा क्या समझते होंगे?' मोहित बोला.

'जो
भी समझे. उन्हें समझा देना कि मुझे मोहिनी ही बना रहने दें, चुड़ैल बनने पर
मजबूर न करें. उनका सारा खून पी जाऊंगी मैं. अगर उन्होंने, या किसी ने भी
तुम पर हाथ उठाया अथवा तुम्हें मारने की योजना भी बनाई तो मुझसे बुरा कोई न
होगा.'

'मोहिनी ?'

'हां, गला दबा दूंगी उनका भी. अब मुझे जाने दो.'

'?'-
तभी अचानक से दरवाज़ा खुला और फिर एक झटके से अपने स्थान पर फिर से आ गया-
भड़ाक की आवाज़ के साथ मोहित केवल अपने ही स्थान पर थरथराते हुए किवाड़ को
देखता रह गया. उसे लगा कि जैसे किसी तीव्र वायु की सनसनाहट के साथ कोई
अतिवाहिकीय परछाईं उसके कमरे से सख्त क्रोध के साथ अपने जबड़े चटकाती और
किटकिटाती हुई निकलकर बाहर जा चुकी है.  

क्रमश: 

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रचनाएँ
नि: शब्द के शब्द ( हिंदी उपन्यास)
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*** अगर आप विश्वास करते हैं कि, आत्माएं होती हैं और वे भटकती हैं तो यह कहानी आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेगी. यदि आप भटकी हुई आत्माओं और बे-बस, मजबूर और अपने प्यार की तलाश में परेशान आत्माओं पर विश्वास नहीं करते हैं तो लेखक और प्रकाशक के पास आपके लिए किसी भी प्रकार का कोई भी संतुष्ट उत्तर नहीं है.
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