nidhi
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तुम साथ दो न दो , अश्रु मेरे साथ हैं । वेदना से जब कभी, व्यथित हुआ हृदय मेरा, अस्तित्व ही बिखरने लगा, आरोपों के प्रहार से, लेकर ये अपनी शरण में, समेटते मुझे हर बार हैं। तुम साथ दो न दो, अश्रु मेरे साथ हैं । जब कभी पथ खो गया, गहन अंधकार में, और मैं भटक गया निराशा के संसार में, आशाओं को फिर जगाकर, देते दिलासा हर बार हैं । तुम साथ दो न दो, अश्रु मेरे साथ हैं । स्मृतियों में डूबकर, विरह में जब मन जला, छोड़ दूँ संसार को क्या? प्रश्न ने, मन को छला, तब हृदय की अग्नि बुझाते, देते शीतलता अपार हैं। तुम साथ दो न दो, अश्रु मेरे साथ हैं । दर्द में हँसी में दुख में खुशी में जीत में हार में धूप में छाव में थाम कर हाथ मेरा, लगाते मुझे उस पार हैं। तुम साथ दो न दो , अश्रु मेरे साथ हैं ।
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