तुम साथ दो न दो ,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
वेदना से जब कभी,
व्यथित हुआ हृदय मेरा,
अस्तित्व ही बिखरने लगा,
आरोपों के प्रहार से,
लेकर ये अपनी शरण में,
समेटते मुझे हर बार हैं।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
जब कभी पथ खो गया,
गहन अंधकार में,
और मैं भटक गया
निराशा के संसार में,
आशाओं को फिर जगाकर,
देते दिलासा हर बार हैं ।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
स्मृतियों में डूबकर,
विरह में जब मन जला,
छोड़ दूँ संसार को क्या?
प्रश्न ने, मन को छला,
तब हृदय की अग्नि बुझाते,
देते शीतलता अपार हैं।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
दर्द में हँसी में
दुख में खुशी में
जीत में हार में
धूप में छाव में
थाम कर हाथ मेरा,
लगाते मुझे उस पार हैं।
तुम साथ दो न दो ,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
तुम साथ दो न दो ,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
वेदना से जब कभी,
व्यथित हुआ हृदय मेरा,
अस्तित्व ही बिखरने लगा,
आरोपों के प्रहार से,
लेकर ये अपनी शरण में,
समेटते मुझे हर बार हैं।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
जब कभी पथ खो गया,
गहन अंधकार में,
और मैं भटक गया
निराशा के संसार में,
आशाओं को फिर जगाकर,
देते दिलासा हर बार हैं ।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
स्मृतियों में डूबकर,
विरह में जब मन जला,
छोड़ दूँ संसार को क्या?
प्रश्न ने, मन को छला,
तब हृदय की अग्नि बुझाते,
देते शीतलता अपार हैं।
तुम साथ दो न दो,
अश्रु मेरे साथ हैं ।
दर्द में हँसी में
दुख में खुशी में
जीत में हार में
धूप में छाव में
थाम कर हाथ मेरा,
लगाते मुझे उस पार हैं।
तुम साथ दो न दो ,
अश्रु मेरे साथ हैं ।