किसी को कुछ, किसी को कुछ, किसी को कुछ, नहीं मिलता,
यही दस्तूर है दुनिया का, कि सब कुछ नही मिलता,
मुझे सब कुछ है वो हासिल , जो तेरा ख्वाब हो शायद,
मगर जिस पल का मुन्तज़िर हूँ ,वही लम्हा नही मिलता,
हज़ारों पाल लीं ख्वाहिश, हज़ारों पाल लीं मुश्किल ,
फसें हैं उस भँवर में की , कहीं साहिल नहीं मिलता ,
चँद पैसों की खातिर जो , सुला ली आत्मा हमने ,
कि अब रोते हैं, पहले सा ,वही चेहरा नहीं दिखता ,
हमीं हम हैं, यही एक बात, हर कोई समझता है,
खुदा बन बैठे हैं सारे, मगर इंसा नहीं मिलता ।