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17 सितम्बर 2017

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किसी को कुछ, किसी  को  कुछ,  किसी  को  कुछ,  नहीं  मिलता, यही दस्तूर  है  दुनिया  का,  कि सब कुछ  नही मिलता, मुझे  सब  कुछ  है  वो  हासिल , जो  तेरा  ख्वाब  हो  शायद, मगर  जिस  पल का मुन्तज़िर हूँ ,वही  लम्हा  नही  मिलता, हज़ारों  पाल लीं ख्वाहिश,  हज़ारों पाल  लीं मुश्किल , फसें हैं उस भँवर में की  , कहीं साहिल नहीं  मिलता , चँद पैसों की खातिर  जो , सुला ली  आत्मा हमने , कि अब रोते हैं, पहले सा ,वही चेहरा नहीं  दिखता , हमीं हम हैं, यही एक  बात,  हर कोई समझता  है, खुदा बन बैठे  हैं  सारे,  मगर  इंसा  नहीं  मिलता ।

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अमन सिंह

अमन सिंह

बहुत सुंदर लिखा है

17 सितम्बर 2017

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

हमी हम हैं , यही एक बात हर कोई समझता है ,खुदा बन बैठे हैं सारे मगर इंसा नहीं मिलता -- निधि जी बहुत अच्छी गजल है |बहुत बहुत बधाई |

17 सितम्बर 2017

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माँ

10 सितम्बर 2017
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जैसे जैसे उम्र गुज़र रही है,मुझमें मैं कम हो रही हूंँ,माँ तू बढ़ रही है ।सुबह सवेरे बालों की अब,चोटी बनाना भूल गई हूंँ,तेरी ही तरह अधखुला जूड़ा बनाए,बच्चों के पीछे दौड़ रही हूंँ।मेरे चेहरे पर तुम्हारे चेहरे कीलकीरें उभरने लगी हैं,मेरी आंखें भी बिल्कुलतुम्हारी आंखो जैसी,दिखने लगी हैं,कभी अचानक जब,यूँह

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काश की ज़िंदगी.....

11 सितम्बर 2017
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काश की जिंदगी थोड़ी सी तो अपनी होती,हर  एक आंसू  के  पीछे  छुपी खुशी  होती,मोल  दौलत  का  अगर होता  नहीं  दुनिया  में,तो यह मुमकिन था कि इंसान की कीमत होती,रिश्ते बिकते नहीं बाजार में सिक्कों के एवज़,हर एक ज़र्रे में  जो  थोड़ी  सी मोहब्बत होती,सिर्फ  चेहरा  नहीं  इंसान  का  देखा जाता,प्यार की एक नज़र

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17 सितम्बर 2017
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किसी को कुछ, किसी  को  कुछ,  किसी  को  कुछ,  नहीं  मिलता,यही दस्तूर  है  दुनिया  का,  कि सब कुछ  नही मिलता,मुझे  सब  कुछ  है  वो  हासिल , जो  तेरा  ख्वाब  हो  शायद,मगर  जिस  पल का मुन्तज़िर हूँ ,वही  लम्हा  नही  मिलता,हज़ारों  पाल लीं ख्वाहिश,  हज़ारों पाल  लीं मुश्किल ,फसें हैं उस भँवर में की  , कह

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तुम  साथ  दो  न  दो , अश्रु  मेरे   साथ   हैं । वेदना  से  जब  कभी, व्यथित हुआ हृदय  मेरा, अस्तित्व ही बिखरने  लगा, आरोपों  के  प्रहार  से, लेकर ये  अपनी  शरण में, समेटते मुझे  हर  बार  हैं। तुम  साथ दो  न  दो, अश्रु  मेरे  साथ  हैं । जब  कभी पथ खो गया, गहन अंधकार  में, और मैं भटक गया निराशा के  संसार  में, आशाओं को फिर जगाकर, देते दिलासा हर बार  हैं । तुम  साथ  दो  न  दो, अश्रु  मेरे  साथ  हैं ।  स्मृतियों में  डूबकर, विरह में जब मन जला, छोड़ दूँ संसार को क्या? प्रश्न ने,  मन  को  छला, तब हृदय  की  अग्नि  बुझाते, देते शीतलता अपार  हैं। तुम साथ  दो  न  दो, अश्रु  मेरे  साथ  हैं । दर्द  में हँसी में दुख में खुशी में जीत  में  हार  में धूप में छाव में थाम  कर  हाथ  मेरा, लगाते मुझे उस पार  हैं। तुम  साथ  दो  न  दो , अश्रु  मेरे  साथ  हैं ।

23 सितम्बर 2017
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तुम  साथ  दो  न  दो ,अश्रु  मेरे   साथ   हैं ।वेदना  से  जब  कभी,व्यथित हुआ हृदय  मेरा,अस्तित्व ही बिखरने  लगा,आरोपों  के  प्रहार  से,लेकर ये  अपनी  शरण में,समेटते मुझे  हर  बार  हैं।तुम  साथ दो  न  दो,अश्रु  मेरे  साथ  हैं ।जब  कभी पथ खो गया,गहन अंधकार  में,और मैं भटक गयानिराशा के  संसार  में,आशाओं

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