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अंक 1. शुभारम्भ

1 नवम्बर 2021

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नमस्कार पाठकों 🙏 🌹 🙏
हम राधा श्री शर्मा आज एक नई कहानी से आपका परिचय करा रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हमारी इस कहानी को भी आपका उतना ही प्रेम और सहयोग मिलेगा, जितना आज तक मिलता आया है। ये कहानी नायिका प्रधान कहानी है, जिसमें वो अपने रिश्तों से जूझते हुए अपनी एक नई पहचान बनाती है। जहाँ वो पुरुष प्रधान समाज में हर प्रकार से ठगी जाती है, किन्तु फिर भी हौंसला रखते हुए आगे बढती है और जीतती है। 
ये कथानक पूर्णतया काल्पनिक है और किसी भी प्रकार के कानून या धर्म का खंडन नहीं करता है। यदि इसकी किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता पाई जाती है तो वो मात्र एक संयोग होगा। ये कथानक केवल और केवल हमारे मन, मस्तिष्क में चलने वाले अंतर्द्वंद का परिणाम है। अतः इसे किसी भी तरह के विवाद या घटना से जोड कर ना देखा जाए। 
हमें पूर्णतया उम्मीद है कि ये कथानक आपका स्वस्थ मनोरंजन करने में पूरी तरह से सफल रहेगा।  इसी आशा के साथ हम अपनी नई रचना का शुभारंभ करते हैं जिसका शीर्षक है - जीवन दर्पण 😊 🙏😊


🙏🌷🙏  जय श्री गणेश  🙏🌷🙏
🙏🌷🙏  ॐ सरस्वतये नमः 🙏🌷🙏


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लगभग तेतालीस चवालीस साल की महिला खुद को होम क्वारंटीन करने की जद्दोजहद कर रही है, और ठाकुर जी से प्रार्थना कर रही है कि ठाकुर जी कुछ तो ऐसा करो कि मुझे आपसे दूर ना होना पड़े। आप मेरे ठाकुर ही नहीं मेरे भाई भी हो और आपसे बढकर मैंने वैसे भी आज तक किसी को नहीं जाना। 

भजमन प्रभु चरणन सुख राशि, रखमन शुभ श्री रुपनयन सुख राशि।
ओ कान्हा अब आन उबारो, नेह डोर तुमसे लागी है तुम जमुना तुम काशी।
भजमन प्रभु . . . . . . . . 



कुछ देर की भागदौड और दो चार जगह फोन करने पर पता चला कि उसको होम क्वारंटीन करने की अर्जी मान ली गई है और अब वो होम क्वारंटीन हो जाएगी। उसने चार पांच किलो दूध पाउडर, कुछ दवाइयां, सब्जी और कुछ राशन का सामान लेकर घर आ गई। 

एक बडा सा गेट और गेट से आगे एक सुन्दर सा लगभग बीस फुट चौड़ा रास्ता। रास्ते के दोनों तरफ बडे बडे सघन छाया वाले पेड लगे हुए हैं जिनसे सारे रास्ते में छांव फैली हुई है। पेड़ों के पीछे से झाँकते सुन्दर सुन्दर रंग बिरंगे अलग अलग किस्म के फूल और फूलों पर मंडराते भंवरे और तितलियाँ कभी लॉन की घास पर तो कभी फूलों का रस पान कर रहे हैं। कभी-कभी मधुमक्खियों का एक झुंड भी वहां से उन फूलों का रस चूसने आ जाता है, जिससे शायद तितलियां चिढ जाती है और उन्हें भगाने की जद्दोजहद में लग जाती हैं।

घर के प्रवेश द्वार पर दो खम्भों का सहारा देकर एक छत डाली हुई है और बहुत ही खूबसूरत पांच फुट का दरवाजा है जिसमें सेंसर लगे हुए हैं जो सम्भवतः केवल उन महिला के चेहरे और हाव भाव को देख कर ही खुलता है। घर के अंदर जाने पर एक बडा सा हाल है, उस हाल में पचपन इंच का स्मार्ट एलईडी लगा हुआ है, जिसका आईपीएस डिस्प्ले है। ऊपर नीचे कुल मिलाकर छः कमरे नजर आ रहे हैं, जो देखने में काफी बडे भी लगते हैं।

एक बडे से कमरे में बहुत ही खूबसूरत पूजा करने का स्थान बनाया हुआ है। जिसमें एसी और पंखा लगा हुआ है। और सारे घर में कहीं भी एसी लगे होने के कोई चिन्ह दिखाई नहीं देते। सारे घर में बडे बड़े कूलर लगे हुए हैं। उन महिला ने अपने साथ लाया हुआ सारा सामान सैनेटाईज किया, मेड को उसे छूने से मना किया और नहाने चली गई। 

बाकी उसका घर वैसे भी एक कोने में और एकांत में था, तो किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी। घर में उसके अलावा तीन मेड थीं जिनमें दो सफाई करने के लिए और एक थी तो खाना पकाने के लिए किन्तु खाना पकाने में केवल उसकी सहायिका बनकर रह गई थी। उसके दो बच्चे थे, जो अभी हास्टल में रह रहे थे। हालाँकि हास्टल गये हुए उन दोनों को अभी एक साल ही हुआ था और इस साल तो बीस मार्च से ही लॉकडाउन लगा हुआ है। उसने अभी तक अपने संक्रमित होने की सूचना किसी को नहीं दी थी। 

एक भाई था जिससे वो अपनी जान से भी ज्यादा प्रेम करती थी। उसी के कारण उसने किसी को खबर नहीं की थी क्योंकि वो जानती थी कि वो बहुत दूर रहती है और ऐसे में सहायता कोई कर नहीं पाएगा और केवल दुखी ही होते रहेंगे। जरूरत पडेगी तो बाद में खबर कर देगी। वो ये भी जानती थी कि उसका भाई भी उससे उतना ही प्रेम करता है जितना वो उससे। किन्तु कुछ समय से सम्वाद ना होने के कारण वो कुछ संतुष्ट थी कि उसे पता नहीं चलेगा। लेकिन जिनकी आत्मायें एक दूसरे से जुडी होती हैं, उनसे अपनी स्तिथि कितनी देर छुपाई जा सकती है। 

जब वो नहाने गई हुई थी तो उसके भाई का वीडियो कॉल आया जिसे उसकी रसोईघर वाली मेड ने उठाया। 

मेड - " हैलो! जी सर! मैं कमलेश बोल रही हूँ।" 

सर  - " कमलेश! वन्दु दी कहाँ हैं?" 

कमलेश - "वंदना मेम तो नहाने गईं हैं। अभी हस्पताल से आईं हैं। शायद उनको भी करोना हुआ है।" 

(तभी वो महिला जिनका नाम वंदना है, नहा कर बाहर आई और अपनी मेड के हाथ में अपना फोन देख कर गुस्सा हो गई।) 

वंदना - " तूने मेरे फोन को हाथ क्यों लगाया? तुझे कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा? मैं मना करके गई थी ना किसी भी चीज को हाथ मत लगाना? जल्दी से फोन रख अब नीचे और अच्छे से साबुन से पहले हाथ धोना, फिर माउथवाश से अच्छे से कुल्ला करना और फिर नहा कर और अपने ये पहने हुए कपडे साबुन से अच्छे से धोकर आना। 

हालांकि वंदना एक एक चीज को अच्छे से सैनेटाईज करके गई थी। किन्तु वो कोई भी लापरवाही नहीं करना चाहती थी। वीडियो कॉल पर उसके भाई ने सारी बात सुन ली थी। 

उसकी बातें सुनकर फोन पर खडा इंसान लड़खड़ाने लगा। उसे लड़खड़ाते देख वंदना ने तुरंत फोन हाथ में लिया और बोली - "समीईईईईईईईईर! सम्भाल अपने आप को भाई। तुझे कुछ हो गया तो मैं कैसे लडूंगी इस विषाणु से??" 

समीर - " इसका अर्थ है आप सचमुच कोविड - 19 विषाणु से संक्रमित हैं।" 

वंदना - "हाँ, मुझे भी आज ही पता चला। तो मैंने अपने आपको होम क्वारंटीन करवा लिया है। यहां आराम रहेगा तो मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगी। मैं सारी दवाइयां भी ले आई हूँ। जिनसे जल्दी ही रिकवर कर जाऊँगी। "

समीर दुखी पर आश्चर्य भरी आवाज में - "पर दी! आप संक्रमित हुए कैसे? आप तो कभी घर से बाहर भी नहीं निकलते हो। फिर कैसे.....???

वंदना कुछ हकलाते हुए सहमी सी आवाज में बोली - "वो... म्म् म म म् म् म.. मैं कुछ कोविड संक्रमितों के लिए तीनों समय दवाई और खाने का प्रबंध कर रही थी। पूरी सावधानी भी रख रही थी। फिर भी रोज रेड जोन में जाने से कुछ संक्रमण तो लगेगा ही। पर खुशी की बात ये है कि जिनको मैंने खाना और दवाई दी, वो सब अब संक्रमण मुक्त हो चुके हैं। मैं भी जल्दी ही ठीक हो जाऊँगी। तू चिंता मत कर। और हाँ, अपना ध्यान ठीक से रखना।"

समीर थोडा व्यथित होते हुए - "हाँ दी! मैं अपना अच्छे से ख्याल रखूँगा। और आप भी अपना अच्छे दवाई और भाप लेते रहना।"

वंदना - "हाँ । अच्छा सुन! बच्चों का फोन आया था। तुझे तो पता ही है कि लॉकडाउन के चलते बच्चों का कॉलेज तो अभी खुलेगा नहीं। पर अपने प्रोजेक्ट के चलते वे पिछले चार महीनों से हास्टल में ही हैं। पर अब तू उन्हें जाकर ले आ। क्योंकि एक तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठीक से चल नहीं रहे हैं और दूसरे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आना सेफ भी नहीं है। हाँ, मेरी गाडी ले जाना। उनका सामान ज्यादा होगा तो उसमें आराम से आ जाएगा। "

समीर - "ठीक है दी! आप बच्चों की बिल्कुल चिंता मत करना। मैं उन्हें ले आऊंगा और अपने पास ही रखूँगा जब तक आप बिल्कुल ठीक नहीं हो जाते।" 

कुछ देर और बात करके फोन काट दिया। वंदना ने उसके बाद होम सैनेटाईज करने वाले लोगों को बुलाया और अपने कमरे और पूजा रूम को छोड़कर सारे घर को सैनेटाईज करवाया। उसका कमरा वैसे भी पूजा रूम से जुड़ा हुआ था। वंदना पूजा रूम में चली गई। भाई ने तुरंत ही अपनी रसूख के लोगों को कह कर उनके लिए दवा आदि सारे प्रबंध घर में ही उपलब्ध करा दिये। और बच्चों को भी हास्टल से अपने पास ले गए। ताकि वे दोनों सुरक्षित रहें। 

आप सोच रहे होंगे कि इन देवी जी के पति कहाँ हैं? इनके पति कुछ आधुनिक विचारधारा के व्यक्तित्व हैं, जिनका, इनके साथ निर्वाह होना असंभव था, इसलिए एक आधुनिक युग की महिला के साथ अलग गृहस्थी बसा ली। उन्होंने बहुत बार इनसे तलाक माँगने की कोशिश की किन्तु इन देवी जी के संस्कार उसकी आज्ञा नहीं देते। किन्तु पति की खुशी के लिए उन्हें अपनी तरफ से पूरी तरह स्वतंत्र कर दिया। एक रुपया भी खर्च नहीं माँगा। अपने दोनों बच्चों की अकेले परवरिश की। आज जब कोई काम नहीं है, केवल आराम ही करना है तो यादों की लहरें रह रह कर टक्कर मार रहीं हैं। ये भी सोचने लगीं कि आखिर जीवन में क्या खोया और क्या पाया? यादों के झंझावात रह रह कर अपनी ओर खींच रहे हैं और ये जैसे सूखे पत्ते की भाँति उसमें खिंचे चले जा रहीं हैं..... 


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"वंदू! क्या कर रही है, बेल को ठीक से पकड, नहीं तो ये पोखर में घुस जाएगी।" - वंदना की बडी बहन अल्का ने साढ़े सात साल की वंदना को झिड़कते हुए कहा। 

"हाँ दीदी! अभी पकड़ती हूँ।" - वंदना ने भैंस के मुँह के पास जाकर बेल पकड़ कर भैंस को सीधा खींचते हुए अपनी ग्यारह साल की बडी बहन अल्का के आदेश का अक्षरशः पालन किया। 

आगे आगे वंदना भैंस की बेल पकड़ कर खींचते हुए चली जा रही थी और पीछे पीछे अल्का भैंस को इधर उधर जाने से रोकती हुई पीछे पीछे चल रही थी। कुछ ही देर में दोनों बहनें सफलता पूर्वक भैंस को एक खाली प्लॉट में कीकर के पेड़ के नीचे बाँध आईं। घर आकर तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गई। अल्का कक्षा छः में पढ़ती थी और वंदना कक्षा तीन में। 

जहां नई कक्षा में जाने पर नई किताबों के मिलने का उत्साह होता है, वही नई नई कापियां भी सुन्दर सुन्दर सजाने की चाह होती है। पर वंदना को कभी भी नई किताबें नहीं मिली। उसे पुरानी किताबों से ही काम चलाना पडता था। दीदी की मिल गईं तो ठीक, नहीं तो गाँव में किसी से भी किताब दिलवा दी जाती थी। वंदना ने अपनी तख्ती मुल्तानी मिट्टी से पोती और उसे सुखाते हुए स्कूल पहुंच गई। वो तख्ती सुखाती जाती और गीत गाती जाती..... 

सूख सूख पट्टी, चन्दन गट्टी 
आयो राजा, महल चिनायो 
महल में दो डंडा, 
डंडा गए टूट 
पट्टी गई सूख।। 

स्कूल पहुंचने तक तख्ती काफी हद तक सूख चुकी थी। फिर भी प्रार्थना होने तक और सुखा दी। प्रार्थना के बाद पी टी हुई और फिर सभी बच्चों को उनकी कक्षा में भेज दिया गया। 

अब तक वंदू की तख्ती सूख चुकी थी। उसने उस पर पेंसिल से लाइन खींची और दवात में स्याही का पैकेट डाल कर उसमें कुछ बूँदें पानी की डाली। डाट लगा कर उसे जोर से हिलाते हुए स्याही तैयार की। स्याही के बाद अब बारी थी कलम चेक करने की। उसने बहुत प्यार से कल शाम सरकंडे की बनाई हुई कलम को बस्ते से बाहर निकाला और उसकी पतली और तिरछी नोक को एक बार फिर से जाँचा कि कहीं मुड तुड ना गई हो। हर बात से आश्वस्त होकर लिखना शुरू किया। सहज सहज और सुन्दर सुन्दर, मोती जैसे अक्षर लिखते हुए उसने एक तरफ से हिंदी के एक पाठ की कुछ पन्क्तियों को तख्ती पर उतारा। तख्ती के दूसरी ओर उसने पच्चीस तक पहाड़े लिखे और उन्हें सूखने के लिए रख दिया।

कक्षा में मास्टर जी ने गणित की पुस्तक खोलने को कहा। उसमें परिमेय और अपरिमेय संख्या पढाने लगे। वंदना ने समझने की बहुत कोशिश की, किन्तु उसे फिर भी इन संख्याओं का पता नहीं लगा। 

भूगोल में धरती को गेंद की तरह गोल बताया तो वंदना अपने छोटे से दिमाग से सोचने लगी कि गेंद तो इतनी छोटी सी होती है और धरती इतनी बड़ी... फिर धरती गेंद की तरह गोल कैसे???? गेंद पर खडे होंगे तो चट से गिर जाएंगे.. पर धरती पर तो नहीं गिरते???? 

हिन्दी की कक्षा में उसे कभी कुछ अजीब नहीं लगता था। विज्ञान की कक्षा में बल, और घर्षण पढ़ते हुए सोचती कि यदि किसी चीज को उठा कर एक जगह से दूसरी जगह रखना बल है, तो ये लडाई और कुश्ती में एक दूसरे को पटकना क्या है??? और यदि ये भी बल है, तो क्या बल बल में भी अन्तर होता है????

पढते हुए वो अपने नन्हें से दिमाग को घुमाती रहती। जब मास्टर जी पूछते कि क्या समझ आ गया तो "हाँ" और "ना" दोनों में ही सिर हिला देती। पता नहीं कैसे पर कई बार अध्यापक बच्चों को देख कर ही समझ जाते हैं कि बच्चे के जीवन में कितना संघर्ष है, या फिर वो कितनी उन्नति करने वाला है। सारे मास्टर उसे ऐसे सिर हिला कर जवाब देते देखते तो समझ जाते कि इसे कुछ समझ नहीं आया है। फिर लंच के बाद उसे एक एक कर के अपने पास बुलाते और और उसे अच्छे से सारे पाठ समझाते। जब वो अच्छे से समझ जाती तो उसे घर भेज देते। 

घर में सब के लिए उसका होना ना होना एक बराबर था। सभी बस एक मौके की तलाश में रहते कि बस उससे कोई गलती हो। छोटी बहन उसे कुछ समझती नहीं थी और बडी के लिए वो बस काम बिगाड़ने वाली। बडे भाई के लिए कोई मतलब ही नहीं था कि उसके साथ कैसा बर्ताव हो रहा है, उसे बस अपने ही खाने पीने से मतलब रहता था। एक छोटा भाई था जो दीदी दीदी करते हुए उसके पीछे लगा रहता था। 

बडे भाई का नाम प्रदीप कुमार और छोटे भाई का नाम समीर कुमार, बडी बहन का नाम अल्का और छोटी बहन का नाम दीपा। पापा रमेश कुमार और माँ बेला देवी थी। माँ को यूँ लगता था कि यदि ये यूँ ही मूर्खों की भाँति रही तो इस दुष्ट समाज में कैसे जियेगी। इसलिए उसे उसकी हर मूर्खता पर जमकर पिटाई मिलती। वो किसी से कुछ कहती नहीं और खुद में ही सिमट जाती। दीपा उसकी इस परिस्तिथि का दबा कर लाभ उठाती और बात बात पर उसे पिटवा देती। हर समय उसे मूर्ख साबित करती थी। वो कितनी ही दुहाई दे ले कि उसने वो गलती नहीं की है, किंतु जब तक उसे पीटने वाला पीटते हुए थक नहीं जाता, उसकी पिटाई बंद नहीं होती थी। उसकी सबसे ज्यादा पिटाई माँ, प्रदीप भैया और अल्का दीदी करते। गाँव में कुछ लोगों को उससे सहानुभूति होती, पर कोई कितना बचा पाता। 

कहते हैं कि समय सदा अपनी ही गति से आगे बढता है। उसे तो ये लगता कि शायद बडी होने पर उसे इन मार पिटाई से राहत मिल जाए, किन्तु उसके लिए मानो समय आगे ही नहीं बढना चाहता था। जैसे समय को भी उसे पिटता हुआ देखने में आनंद मिलता हो। पिटने से उसे बचाने में उसकी दादी, पड़ोस के ताऊ और उसके स्कूल के मास्टर जी उसे अक्सर बचाने के लिए आ जाते थे। वो किसी से भी अपने मन की बात कहने में डरती थी। कोई कुछ भी काम कह दे, बिना किसी नानुकुर के उसे कर देती। कितना भी कठोर समय हो बीतता तो है ही। वंदना का भी समय बीत रहा था। 

इतने कठिन समय में वंदना के सच्चे साथी थे, उसकी किताबें, उसका अपना मन, ठाकुर जी और समीर। पर समीर अभी बहुत छोटा था, वो उससे कुछ कह नहीं सकती थी, ऊपर से उससे छः साल छोटा। क्या कहे और कैसे कहे??? उसने बस ठाकुर जी से ही अपना हेत लगा लिया था। भगवान श्रीकृष्ण की लीला कथाओं में उसे बडा आनंद मिलता था। जहां से भी उसे इस तरह की कोई किताब मिल जाती, वो पढ़ने बैठ जाती। इससे उसका समय भी कट जाता और उन सब बातों से ध्यान भी हट जाता। 

घर के कामों में भी उसका पूरा सहयोग रहता, हालांकि उसका सहयोग किसी गिनती में नहीं था। सुबह भैंस की सानी करने का जिम्मा उसका था, गोबर डालना, भूसा लाना, खर भिगोना, चारा कटवाना, भैंस को कुए से खींच कर पानी पिलाना। उसे बाहर के खाली प्लॉट में बांध कर आना, घर में एक समय के बर्तन करना, चारा लाने में सहायता करना आदि। ज्यों ज्यों उम्र बढती गई काम की जिम्मेदारियाँ भी बढती चली गईं। अब धीरे धीरे उसमें रोटी बनाना भी जुडने लगा था। शाम को कुछ रोटियाँ उसे सेकनी होती थी, जिससे वो रोटी बनाना सीख ले। खेतों का काम भी जुड़ने लगा। अब खेतों से ज्वार, दीपा के साथ जाकर उसे लानी होती थी। इतनी देर बडी बहन पढ लेगी इसलिए कोई प्रश्न चिन्ह नहीं। 

वंदना के दस साल की होते होते पढ़ाई के साथ-साथ बहुत सी जिम्मेदारियाँ आ गईं थीं। छटी कक्षा में आकर उसने दूध निकालना भी सीख लिया था। तो शाम का दूध भी वही निकालती थी। कभी-कभी कपडे धोने का काम भी होता था। जबकि अपने कपडे तीनों बहनों को खुद ही धोने होते थे। समीर भी अब चार साल का हो गया था, पर अभी तक उसकी गोद से नहीं उतरा था। उसके साथ ही सोता, उठता बैठता, खाता पीता और खेलता था। इतने पर भी वंदना ने खुद को अवसाद में नहीं जाने दिया था। हाँ, वो खुद को अकेला जरूर महसूस करती थी। जब भी उसे जरूरत होती किसी अपने से अपने मन की बात कर ले,उसे बदले में झिड़की ही मिलती। अब उसे मार थोडी कम पड़ती थी। पर व्यवहार में कोई खास अन्तर नहीं आया था। गाँव में किसी से कुछ कहती तो सारी बात का बतंगड बनकर उसके सामने आती, वो हक्की बक्की बस देखती रह जाती और उसे एक बार फिर उस गलती के लिए मार पड़ती जो उसने की ही नहीं थी। 


वंदना अपने खेलने के लिए भी समय निकाल लेती और पढने के लिए भी। पढते पढते खेल लेती थी और खेलते खेलते पढ लेती थी। उसे अक्सर अकेले खेलते हुए देखा जाता था। उसने किसी से भी अपने मन की बात कहना छोड़ दिया था। किसी से कह कर भी मार तो उसे ही पडनी थी। बात करनी होती तो ख़ुद से ही बात कर लेती थी। कई बार उसे कोई टोक भी देता कि छोरी किससे बात कर रही है?? वो जवाब में केवल मुस्कुरा भर देती। किन्तु इतने पर भी उसे सामाजिक व्यवहार नहीं आया था, जिसके लिए उसकी माँ सबसे ज्यादा प्रयासरत रहती थी। पढने में उसके साथ उसके ताऊ चाचा के चार बच्चों का ग्रुप था, जो कि उसकी ही कक्षा में पढते थे। वो जब भी उससे मजाक करते तो उसे लगता था कि उसका मजाक उड़ा रहे हैं, जिससे कई बार बुरी तरह चिढ जाती थी। शेखर, केशव, अरुण और प्रभात.. इन्हीं चारों के साथ वो कुछ बात कर लेती थी, नहीं तो उसे बाकी किसी भी चीज़ की जानकारी नहीं थी।

वंदना आठवीं कक्षा में आ चुकी थी। अल्का ग्यारहवीं में, प्रदीप कॉलेज के दूसरे प्रथम वर्ष में दीपा छटी में और समीर दूसरी कक्षा में था। समीर दीपा से चार साल छोटा था। जबकि दीपा और वंदना के बीच केवल दो वर्ष का अन्तर था। वंदना पढने में तेज थी। उसे बहुत जल्दी सब कुछ समझ आ जाता था। इसलिए सभी मास्टरों की चहेती थी। सब को लगता था कि एक दिन ये बहुत कुछ अचीव करेगी। दिन बीतने के साथ साथ वंदना में परिपक्वता आती जा रही थी, लेकिन केवल काम और पढ़ाई को लेकर... सामाजिक व्यवहार को लेकर नहीं। उसे लगता था कि वो पढाई में अच्छी है ही और घर के काम काज भी उसे आते हैं, बाकी और क्या चाहिए। हालांकि ये अलग बात है कि वो बाहर किसी से भी बात करने में झिझकती थी। सिवाय अपने चारों मित्र भाइयों, और अध्यापकों के वो किसी से भी बात नहीं करती थी। जब बहुत परेशान हो जाती, जब कहीं भी चैन नहीं पड़ता तो ठाकुर जी से प्रार्थना करने लगती......... 


मन डरपत है कंठ रुंधा है, कंठी धक धक डोले, कान्हा कंठी धक धक डोले,
ज्यों तुम बालन जन्म दिए हो, काहे हाथन सखा हिंडोले, कान्हा हाथन सखा हिंडोले।
दो पग छोटे, दो कर छोने, कंचुल भर मन में दी आशा,
जिनके मुख ते नेह निहारूं, गुरुगिर सी वाकी प्रत्याशा।
नयन नीर मन भीर बड़ी प्रभु, शरण पड़ी चित दासी।
भजमन प्रभु चरणन सुख राशि, रखमन शुभ श्री रुपनयन सुख राशि।
ओ कान्हा अब आन उबारो, नेह डोर तुमसे लागी है तुम जमुना तुम काशी।
भजमन प्रभु . . . . . . . . 


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🌹 क्रमशः........ 

प्रिय पाठकों, हम राधा श्री शर्मा आपके लिए लेकर आए हैं एक नई कहानी जो जीवन मूल्यों से समझौता ना करने वाली एक महिला के जीवन संघर्षों की है। उम्मीद है कि आपको ये कहानी पसन्द आएगी। और हमें एक बार फिर आप सभी का भरपूर स्नेह मिलेगा। हम आप सभी के सहयोग के लिए हृदय से आभारी हैं 🙏 🌷🙏
राधे राधे 🙏🌷🙏


🌹 ©️ राधा श्री शर्मा 🌹 


संजय पाटील

संजय पाटील

शानदार कहानी लिखी है आपने 👌👍🙏

8 दिसम्बर 2021

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा है

10 नवम्बर 2021

Radha Shree Sharma

Radha Shree Sharma

10 नवम्बर 2021

🙏🏻🌷🙏🏻

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Wah mem shandar likha aapne awesome padhke bahuttttt hi accha lga vandna hame bahut pasd aayi 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌💐💐💐💐💐💐

1 नवम्बर 2021

Radha Shree Sharma

Radha Shree Sharma

1 नवम्बर 2021

बहुत-बहुत धन्यवाद काव्या जी 🙏🏻🌷🙏🏻

5
रचनाएँ
जीवन दर्पण
5.0
जीवन के विभिन्न पड़ावों से गुज़रते हुए बचपन से लेकर आधे जीवन तक केवल दुखों और संघर्षों से जूझते हुए एक सफल लेखिका की कहानी है जीवन दर्पण... जब उसे उसके मन मुताबिक पढ़ने तक नहीं दिया जाता..... हम घोषणा करते हैं कि ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक हैं। इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी पूर्णतः हमारे मन मस्तिष्क में चलने वाले अंतर्द्वंद का परिणाम है। ये कहानी किसी भी कानून या विधान का खंडन नहीं करती। ना ही किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाती है। फिर भी यदि कोई आहत होता है तो हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी हैं 🙏🏻 🌹 🙏🏻 ये कहानी पूरी तरह से मनोरंजन और मनोत्थान के उद्देश्य से लिखी गई है। आशा है कि आप पाठकगण इससे मिलने वाले संदेश को पहचान कर सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करेंगे और जीवन में उन्नति पथ पर अग्रसर होंगे। यदि इस कहानी को पढ कर हमारा एक भी पाठक अवसाद से बाहर निकल कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है तो हमारा ये कहानी लिखने का उद्देश्य सफल हो जायेगा। राधे राधे 🙏🏻🌷🙏🏻 आपकी अपनी (चाची, मौसी, ताई, बुआ, दीदी, बेटी, मित्र ) या जो भी आप प्रेम से सम्बोधित करें 🙏🏻 🙏🏻 🙏🏻 राधा श्री शर्मा

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