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ओस की बूंदें

29 नवम्बर 2021

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होंठों पर ओस की बूंदों जैसी खुबसूरती लिपट गई।

हृदय से हृदय के तार जुड़े और मैं मचल गई।।

नेह वंदन तुमसे ऐसा लगा प्रियतम।

आहिस्ता से छूकर पूरी  कायनात निकल गई।।

इत्र की खुशबू सा आज भी तन मन भीगा है।

शरद ऋतु की पूर्णिमा सा चांद आज तक निकला है।।

ज़मीर से मेरे इश्क वो दरिया दिल में उमंगे जगा गया।

नशेमन में ओस की बूंदों जैसा कब वो बरस गया।।

Dr Anita Mishra

Dr Anita Mishra

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29 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
Anita Mishra की डायरी
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यह किताब मन के उद्गारों को शब्दों में बांध कर डायरी लेखन से जोड़ दिया है। आप प्रबुद्ध जन पढ़ें और मार्गदर्शन करें 🙏
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<p>होंठों पर ओस की बूंदों जैसी खुबसूरती लिपट गई।</p> <p>हृदय से हृदय के तार जुड़े और मैं मचल गई।।</p

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समाप्त

9 जनवरी 2022
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