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बच्चे मन के सच्चे

22 नवम्बर 2021

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बच्चे मन के सच्चे होते हैं।

हृदय से नाजुक फूल होते हैं।।

बचपन में कली की मानिंद कोमल होते हैं।

जहां की रीत से अनजान होते हैं।।

कोरी किताब की तरह निरे कोरे होते हैं।

अपने परायों से अंजान होते हैं।।

मुखड़ा भोलापन की पहचान होता है।

दोस्त दुश्मन से बचपन कोसों दूर होता है।।

मां के इर्द-गिर्द घूमती जिन्दगी होती है।

मासूमियत की पहचान इनकी बोली होती है।।

बच्चे मन के सच्चे,सारे जग की आंख के तारे।

ये वो नन्हे फूल है जो भगवान को लगते प्यारे।।





काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen rachna 👏👏👏

22 नवम्बर 2021

Dr Anita Mishra

Dr Anita Mishra

16 दिसम्बर 2021

आभार सखी 🙏

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रचनाएँ
Anita Mishra की डायरी
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यह किताब मन के उद्गारों को शब्दों में बांध कर डायरी लेखन से जोड़ दिया है। आप प्रबुद्ध जन पढ़ें और मार्गदर्शन करें 🙏
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समाप्त

9 जनवरी 2022
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समाप्त

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