बच्चे मन के सच्चे होते हैं।
हृदय से नाजुक फूल होते हैं।।
बचपन में कली की मानिंद कोमल होते हैं।
जहां की रीत से अनजान होते हैं।।
कोरी किताब की तरह निरे कोरे होते हैं।
अपने परायों से अंजान होते हैं।।
मुखड़ा भोलापन की पहचान होता है।
दोस्त दुश्मन से बचपन कोसों दूर होता है।।
मां के इर्द-गिर्द घूमती जिन्दगी होती है।
मासूमियत की पहचान इनकी बोली होती है।।
बच्चे मन के सच्चे,सारे जग की आंख के तारे।
ये वो नन्हे फूल है जो भगवान को लगते प्यारे।।