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पवित्र रिश्ता

Punam Banerjee

4 अध्याय
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“जब कभी हमसे तकदीर रूठ जाती है तो आशा की किरणें सपनों में झिलमिलाती है कोई तो होगा जो एकदिन पास आएगा अपने पवित्र प्यार को मुझपर यों लुटायेगा अपनी प्यारी मुस्कराहट से ,नयी उमंग जगायेगा जैसी भी हूँ मैं,बेझिझक वो अपनाएगा जिस्म की सीमा से आगे,दिल तक समा जायेगा तब अपना वो प्यारा रिश्ता ‘पवित्र रिश्ता’ कहलायेगा |” अध्याय -1 क्यों? क्यों ? क्यों?....कहते हुए उसने गुस्से से दिवार पर जोर से मुक्का मारा और उतने ही गुस्से से गरजा... “क्यों हर बार मैं ही ? क्यों हर बार उसकी गलती की सजा मुझे मिलती है? क्यों वह बचकर निकल जाता है?” राईमा दुल्हन के लिबास में चुपचाप एक कोने में दुबककर खड़ी थी और सुनी,भयभीत नज़रों से उस इंसान को देख रही थी जिसे सपने में भी देखना उसके लिए आतंक की बात थी| अचानक उसने देखा उस इंसान के हाथ से खून की धारें बह निकली| उसने गुस्से में खिड़की के कांच पर हाथ दे मारा था और उस कांच के टुकड़े जमीन पर पड़े थे और शायद कुछ टुकड़े उसके हाथ में भी चुभ गए थे इसलिए तो उसका चेहरा दर्द से पीला पड़ा था ..वह अपने दायें जख्मी हाथ को बाएं हाथ से पकड़कर रखा था और दर्द को सहने की कोशिश कर रहा था| वह उठा और अलमारी से फर्स्ट एड बॉक्स निकला और मरहम पट्टी करने की कोशिश की पर बाएं हाथ से पट्टी बाँधी नहीं जा रही थी तो उसने गुस्से से उसे दूर फेंका और जाकर सोफे पर ढह गया| राईमा ने देखा खून अभी भी बह रहा था| उसने किसी तरह साहस बटोरे और फर्स्ट एड बॉक्स उठाकर उसके थोड़ा पास आई और धीरे से कांपते स्वर में बोली, “लाइये ,मैं कर देती हूँ|” पर उसकी आवाज़ सुनते ही उस इंसान के तन-बदन में आग लग गयी| वह उसकी तरफ लाल लाल आँखों से देखते हुए गुर्राया... “बेवकूफ लड़की! मैंने तुम्हें मना किया था न ! तुम जैसे पागल लड़कियों को ये क्यों समझ नहीं आता कि मर्द को सिर्फ एक औरत का जिस्म चाहिए होता है..जिसके लिए वह प्यार का नाटक करता है...और न मिले तो जबरदस्ती करता है...छल-बल हर चीज़ वह अपनाता है सिर्फ और सिर्फ अपनी हवस पूरी करने के लिए...पर तुमलोगों को तो बस लव स्टोरी बनाने का चस्का लगा रहता है...और इतनी बेशरम कैसे हो सकती हो तुम लोग? बिना किसी शर्म के अपना तन विवाह के रिश्ते में जुड़ने से पहले किसीको कैसे सौंप सकती हो? क्या दिमाग नाम की कोई चीज़ नहीं होती? मैं तुम जैसी लड़कियों से नफरत करता हूँ...समझी!!” राईमा अवाक सी उसे देख रही थी! यह क्या कह रहा था! ऐसे बातें कहते हुए उसने एकबार भी नहीं सोचा कि वह खुद भी एक मर्द है!किस मिटटी का बना है ये! और अगर वह उससे नफरत करता है तो उससे विवाह क्यों किया? वह तो अपनी गलती की सजा भुगत रही थी..मर जाना चाहती थी..| पर क्या ये जो कह रहा है वो सच है? उसने सौरभ से प्यार जरुर किया था पर उसने कभी सीमा नहीं लांघी| उसकी परवरिश ऐसी नहीं हुई थी...पर ,यह आदमी,जो इतनी बड़ी बातें कर रहा है...वह क्यों नहीं सोचता कि वह आज जिस जगह खड़ी है,सिर्फ और सिर्फ इसके भाई की वजह से...उस हवसी के वजह से,जिसका सिर्फ एक ही मकसद है...प्यार का छलावा कर लड़कियों के जिस्म से खेलना....| ........................ पूनम  

pavitra rishta

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गलत पोस्ट किया हैं पहला भाग। बढ़िया कहानी

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