भारतीय समाज में पितृसत्ता को ही अब तक वरीयता दी जा रही है।और कहीं तक सही भी है किन्तु हर चीज के दो पहलू होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा।क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती । पिता परिवार के लिए रीढ़ केसमान है जितना शरीर में रीढ़ की हड्डी की महत्ता है उतनी परिवार को पिता की। आधुनिक युग में इतनी जल्दी से बदलाव आया और युवा पीढ़ी उसमें शीघ्रता से बह रही है।आज बहुत से ऐसे पिता भी देखें जा रहे जिन्हें परिवार की जिम्मेदारी का कोई अहसास नहीं पता
नी ही परिवार के प्रति सारी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। लेकिन ऐसी महिलाएं मुठ्ठी भर है। स्त्री ही है पुरुष के साथ कंधा मिलाकर चलती है तो एक और एक ग्यारह हो जाती है अकेली होती है तो जिम्मेदारी घर परिवार दोनों की निभातें निभाते आखिर में टूट जाती है।
निष्कर्षत मै कह सकती हूं कि पितृसत्ता को ही प्रथमिकता देनी चाहिए।