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आधुनिकता की होड़

1 फरवरी 2022

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    *आधुनिकता की होड़*
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आधुनिकता की होड़ में 
दिखा रही अंग।
पहले जैसा है नहीं अब जीने का ढंग।
अंग-प्रदर्शन में लगे उनका मन मलंग।
फटी जीन्स पहनकर दिखाती अपना रंग।
अपने मन में सोचती मैं हूं कितनी चंग।
फटे कपड़ो मे देख यूं हम तो रह गये दंग।
लाज ,शर्म स्त्री का गहना 
इसे ना रखती संग।
आधुनिक बनने की चाह में 
हो रही सब बेरंग।
फैशन की आग में दिखा
 रही सब अंग।
वैसे तो नारियों ने जीत ली है सारी जंग।
किंतु जब तक ना पहेनेगी
लाज शर्म का गहना
तब तक दिखाती रहेगी 
अपने अंग-प्रत्यंग।

डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना

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