राजनीति की नाव
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दोहा गीतिका
पदांत-आव
राजनीति की नाव पर, तैरे नेता चाव।
जन सेवा के राग पर ,छूते सबके पांव।(1)
बावरी होती जनता,चलती जनमत साथ
पाती है विश्वास में, ठोकरें भरी ठांव।(2)
वादे करें लुभावने, दिल लेते हैं जीत
धोखा देते बाद में,लगा लगा कर दांव।(3)
रात दिन यही सोचते, कैसे भर लूं जेब
कुर्सी की इस दौड़ में, लूटे सारे गांव।(4)
वोटों के लिए नेता, जाते हैं हर द्वार
वादे पूरे करते नहीं, देते हैं बहु घाव।(5)
राजनीति की होड़ में, मची है उथल-पुथल
लड़ता है चुनाव फिर,बचा के अपनी नाव।(6)
होड़ लगी सिंहासन की, बेच दिया ईमान
झूठ का सुर सजाकर,के गहूं ठंड़ी छांव।(7)
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना