गीतिका
कुर्सी का लालच लिए ,करने लगते झोल।
नेता पहने डोलते,मानवता का खोल।(1)
बातूनी नेता सदा,प्रति दिन फेंके जाल।
औंधें मुख गिरता तुरत ,जब खुलती हैं पोल।(2)
राजनीति के नाम पर,मचती लूट खसोट।
राजनीति करती दिखे ,पल-पल नित्य किलोल ।(3)
कड़वे बोले शब्द ही,छलनी करें शरीर
वाणी तो अनमोल है,शब्दों में रस घोल।(4)
जनता की सेवा करें, खाते कसम हजार
कुर्सी मिलते ही तुरत, करते टालमटोल।(5)
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना