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दिखावे की दौड़ में गुम हो रही " परंपराएं"

8 जून 2022

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सुभाष मेहता/ बांसवाड़ा

गुजरात के वड़ोदरा की एक युवती द्वारा खुद से ही विवाह करना इन दिनों सुर्खियों में है और हर कोई उसके बारे में जनता चाहता है। यह एक वाक्या आने वाले समय में सामाजिक परम्पराओं पर किस कदर प्रहार करेगा उसकी बानगी मात्र है। चाहे कोई भी धर्म हो सभी में पुरुष और महिला के मध्य होने वाले विवाह को ही सदियों से अपनाया जा रहा है। इस दुनिया की रचना करने वाले ईश्वर ने भी इसी परंपरा को अंगीकार कर संसार को चलायमान रखने की जिम्मेवारी उठाई थी।

पुरातन काल से चली आ रही परम्पराओं में कोई खामी हो तो उसको दूर कर उसको सुधारा जा सकता है, लेकिन नवाचार के नाम पर उसको खत्म करना कहीं न कहीं विनाश का कारण भी बन सकता है। यदि इसी तरह परम्पराओं का त्याग करने का सिलसिला शुरू हो गया तो सामाजिक व्यवस्थाओं का ताना बाना टूट जाएगा।

संविधान में हर किसी को किस तरह जीवन जिया जाए इसका  निर्णय लेने की आजादी दी हुई है, लेकिन यही आजादी बरबादी का बड़ा कारण भी बन सकती है। संविधान सामाजिक परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए भी स्वतंत्रता प्रदान करता है लेकिन उसके उलट हम स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर सामाजिक परम्पराओं का हनन करने में लगे हैं यह एक दिन विनाश का कारण भी बन सकता है।

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