हिन्दी साहित्य प्रेमी
विरह गीतों का संग्रह है जिसमे मेरे द्वारा रचित विरह भाव को केंद्र में रखते हुए गीत रचे गए हैं।
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रात्रि का मध्यम चरण है, और दुनिया नींद में हैएक मैं सुधि में तुम्हारे पागलों - सा जग रहा हूं।ग्रीष्म के आरंभ की यह पूर्ण विकसित पूर्णिमा हैधवल ज्यों मुखड़ा तुम्हारा, आज ऐसी चांदनी है ।शांत शीतल मंद म
कौन है जवाबदेह???