रात्रि का मध्यम चरण है, और दुनिया नींद में है
एक मैं सुधि में तुम्हारे पागलों - सा जग रहा हूं।
ग्रीष्म के आरंभ की यह पूर्ण विकसित पूर्णिमा है
धवल ज्यों मुखड़ा तुम्हारा, आज ऐसी चांदनी है ।
शांत शीतल मंद मलयज पवन में मैं खो रहा हूं -
एक छवि मन में बसाए, जो कि इकलौती बनी है।
कांति अपने शीर्ष पर है, शांति अपने शीर्ष पर है।
और मैं यह नींद वारे, पागलों -सा जग रहा हूं।
चांद-यह साथी हमारा, जाने कितनों का परमप्रिय
मैं इसे बतला रहा हूं - तुम हमारे हेतु क्या हो!
तुम हमारी प्रेरणा हो, साधना , आराधना हो
प्राण अविनाशी व नश्वर देह मध्यक सेतु, क्या हो!
और यह चुप सुन रहा है , धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
मैं सुखद कल के सहारे पागलों सा जग रहा हूं।
रात्रि का मध्यम चरण है, और दुनिया नींद में है
एक मैं सुधि में तुम्हारे पागलों - सा जग रहा हूं।
-- प्रभात पटेल पथिक