सारा अलौकिक विश्व ,
धरती अम्बर नक्षत्र
पुष्प रंग सुगंद
उषा वनस्पति
जल वायु अग्नि
और
उनकी सुंदरता ...
/
हे महादेव क्या इनकी
सुंदरता से भी अधिक ,
कोई और सूंदर वस्तु है क्या ..
जो आप की कल्पना की
सृष्टि में विधमान हो ,
जिसे आप ने अपने हिर्दय की ,
कपाट में छुपा कर रखी हो ,
जिसे आप ने संसार के
समक्ष प्रस्तुत ना कि हो ,,
हे मेरे देव मेरे स्वामी
मुझे तनिक बताओ
मेरे मन के कौतहुल को शांत करो ...
/
हाँ - मेरी शिवप्रिये ,
मेरी भाविनी
मेरी चित्तरूपा
मेरी वनदुर्गा
इक वस्तु मेरे हिर्दय
मेरी कल्पना के मानसपट के
कपाट में छुपी हुई है
जो की निःसंदेह सारे संसार के समस्त गुणों से
कईं अधिक सूंदर और स्थाई है -
जिसे मैंने संसार के सामने ,
प्रस्तुत नहीं कि ,
वह कदाचित -
मेरे अस्तित्व से भी पहले उत्पन्न हो गयी थी
अतः वे है तुम्हारी
प्रेम साधना की - अमिट प्रेरणा ,
तुम्हारी इसी प्रेरणा सोत्र के भाव से
हे भद्राकाली मेरी महेश्वारी
मैं समस्त जगत की रचना
एवम धारणा करता हूँ
तुम्हारी प्रेरणा ही
समस्त विश्व की सुंदरता से कई अधिक सूंदर है
जिसे मैंने अपने हिर्दय में
अपने मानसपट के
कपाट में चिरस्थायी
छुपा कर रखी है ..
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