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स्वर्गगंगा की सीपियाँ ..

13 सितम्बर 2024

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मेरी मासूम आकांक्षाएं 
धरती के समंदर में छिपी
छोटी छोटी सीपियाँ नहीं हैं 
वह तो -
पदार्थ से बनी नश्वर सीपियाँ हैं 
/
मेरी मासूम आकांक्षाएं तो 
शाश्वत सीपियाँ हैं 
जो केवल -
स्वर्गगंगा के तल में छिपी हुई हैं 
.
.
✍️
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रचनाएँ
स्वर्गगंगा की सीपियाँ ...
5.0
मन की व्यथा को शब्दों में पिरोना भी एक अद्भुत कला होती है फिर चाहे काव्य की सूरत में हो या कहानी और चाहे लेख के रूप में , ये कला माँ सरस्वती की पूर्ण कृपा से ही व्यक्ति को प्राप्त होती है ... स्वर्गगंगा की सीपियाँ - शब्दin पर मेरी प्रथम काव्य पुस्तिका है ... जैसे पुस्तक का शीर्षक है वैसे ही पुस्तक की कविताओं में प्रेम , वियोग , विरह , भावना , सत्यता , वफ़ा , परिस्थितियां और जीवन की अनेक सीपियाँ सांस ले रही हैं .. / लेखक धरती के समंदर की सीपियों का अभिलाषी नहीं है उस की कामना तो गगन मंडल में शुशोभित स्वर्ग गंगा की सीपियाँ हैं ये वो सीपियाँ हैं जो की अविनाशी हैं ... / बाकी कुछ - मेरे पाठक गण कविताओं को पढ़ कर खुद ही समझ जाएंगे .... . . लेखक ✍️ - कुमार ठाकुर is
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स्वर्गगंगा की सीपियाँ ..

13 सितम्बर 2024
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मेरी मासूम आकांक्षाएं धरती के समंदर में छिपीछोटी छोटी सीपियाँ नहीं हैं वह तो -पदार्थ से बनी नश्वर सीपियाँ हैं /मेरी मासूम आकांक्षाएं तो शाश्वत सीपियाँ हैं जो केवल -स्वर्गगंगा

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केवल एक व्याख्या ..

13 सितम्बर 2024
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तेरे प्रेम में और मेरे प्रेम में केवल एक व्याख्याविषय का फरक था ..तेरा प्रेम संसारिक था ,मेरा प्रेम अलौकिक , तेरा प्रेम संसार की गतिविधियों के साथ बढ़ता , घटता , बदलता रहा ../म

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आत्मिक आलिंगन ..

13 सितम्बर 2024
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प्रेम में अंतरमन की मार्मिक अनुभूति आत्मिक आलिंगन में है अपने प्रेमी के निस्वार्थ आलिंगन में ये अनुभूति बहुत सहज प्राप्त होती है इसी अनुभूति में भावस्मरणीय

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प्रेम बंधन ..

13 सितम्बर 2024
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पुरुष प्रेम को पसंद करता है स्त्री प्रेम को नहीं ,बंधन को पसंद करती है स्त्री कहती है प्रेम रहे या ना रहे ,कोई बात नहीं किन्तु बंधन उम्र भर रहे .....

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सावन क्या होता है ?

13 सितम्बर 2024
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पतझड़ क्या होता है टूटना और बिखरना सिर्फ छोड़ो ये फ़िज़ूल की बात ...ये बताओ सावन क्या होता है ?..

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बारिश की बूँदें ..

13 सितम्बर 2024
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ये जो कोमल ,ठंडी मासूम सी ,बारिश की बूँदें हैं जो बादलों से ज़मीन पे , गिर रही हैं क्या इन्हें मालूम होता है की - वो कहाँ पर , किस पर , और क्यूं गिर रही हैं ...

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प्रेम शफ़ाक़ पानी ...

13 सितम्बर 2024
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मैंने प्रेमियों की आँखों में प्रेम नहीं ,ज़िद - दंभ - हवस -देखि है आँखें तो कोमल अनुरागी होती हैं और प्रेम शफ़ाक़ पानी .. फिर आँखों में ज़िद , दंभ - हवस जैसी -कठोर श्रृंखला क

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असहनीय पीड़ा ..

13 सितम्बर 2024
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मन की उस असहनीय पीड़ा को भूलना दुष्वार हो जाता है जीवन निरर्थक बेमायने हो जाता है जब जीवन के एक हिस्से के आठ लाख अठहत्तर हज़ार तीन सौ प्रति लम्हे ,,( पांच साल )किसी को अर्प

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संतान बनना होगा ...

13 सितम्बर 2024
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देवी वसुंधरा को देखा है कभी , अपनी दृष्टि से - उस की धरा को , उस के मुख को - किस स्थान पर उस का मुख है किस स्थान पर उस का माथा है किस स्थान पर उस के व

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मैं हर कहानी को याद रखूं ...

13 सितम्बर 2024
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मुझे निरा अबोध रहने दिया होता ..क्या ज़रुरत थी इतनी बड़ी ,किताब देने की ,,लाखों पन्ने हैं हज़ारों वाक्य हैं हर पन्ने पर एक कहानी है हर कहानी में सैंकड़ों शब्द हैं हर शब

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मेरी प्रेम वल्लभी ...

13 सितम्बर 2024
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ऐ मेरी वसुंधरा ,मेरी वसु ,मेरी प्रेम वल्लभी ,सुनो ....मेरे तुम्हारे दरमियान मेरी किसी भी इच्छा अथवा स्वार्थ की पूर्ति का संघर्ष नहीं था, तुमसे प्रेम प्राप्त करने की भी ,मेरी कोई मन

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निर्जीव बूँद ...

13 सितम्बर 2024
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बूँद प्रीत की दूर गगन से , धरती पर टपकी कुछ नूर था उस में कुछ बिरहा थी उस में कुछ तड़प थी उस में कुछ वियोग था उस में फिर भाग्य देखो उस बूँद का एक शिवालय की कुंड

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अखंड दर्शन ...

13 सितम्बर 2024
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अनन्त सागर में उतरना है नदी के जल को ,,फिर वहीँ से उत्पन हो कर बहना है पर्वतों की सीकर से ,,ये एक नियम नहीं है ये एक प्रतीक है ,,ये प्रकृति की नारी रूप का एक मार्मिक ,,और ईश्व

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माया अधीश्वर ...

13 सितम्बर 2024
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इक बूँद प्रीत की दूर गगन से धरती पर टपकी ,,कुछ ज्योति थी उस में कुछ बिरहा थी उस में कुछ तड़प थी उस में कुछ वियोग था उस में ,,फिर भाग्य का रूप देखो , उस बूँद का नसीब देखो

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प्रीत - वशीभूत ...

13 सितम्बर 2024
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सारा अलौकिक विश्व ,धरती अम्बर नक्षत्र पुष्प रंग सुगंद उषा वनस्पतिजल वायु अग्नि और उनकी सुंदरता .../हे महादेव क्या इनकी सुंदरता से भी अधिक , कोई और सूंदर वस्तु है क्

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माँ प्रकृति ने हम को ये ज्ञान दिया ...

13 सितम्बर 2024
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शब्द अलग अलग हैं मगर विचार एक है भावना अलग अलग है मगर श्रद्धा एक है आस्था अलग अलग है मगर फल एक है जीवन अलग अलग है मगर मृत्यु एक है यात्रा अलग अलग है मगर गं

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मैं झरना हूँ ...

13 सितम्बर 2024
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ना कोई लहर ना कोई वेग ना कोई शक्ति ना कोई बाध्य मैं झरना हूँ मैं स्वयं से ..स्वयं ही उत्पन होता हूँ मेरा उद्गम यहीं ठोस घरातल में जीवंत है मैं कठौर चट्टानों के

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कोई काम जगत के किया करो ...

13 सितम्बर 2024
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संध्या के समय मुझे मिल जाया करो ,,वहां वैकुंठ में स्थिर ना बैठा करो ...राधा तुम्हारी धरती पर है धारा भी तुम्हारी धरती पर है निधिवन तुम्हारा धरती पर है लता भवन भी तुम्हारी धरती पर है&nbs

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हरी वसुंधरा ...

13 सितम्बर 2024
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हरी वसुंधरा बन गयी मैं सावन की बौछार में बीज प्रीत का बोया था वसंत की ऋतु में ..फूल अंगना खिल गए सावन की ऋतु में आएंगे वो साजनहरी भरी बरसात में बगियां में भँवरे झूमेंगे&n

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मैं हो गयी बावरिया ..

13 सितम्बर 2024
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बदली सावन की नीर बहाये कजरा अखियन का घुलता जाए मोरा साजन ना घर आयो रे मोरी प्रीत को वो तड़पाये रे सावन बरसे उमड़ घुमड़ के अखियां बरसे रिमझिम रिमझिम टप टीप सुन बूंदों क

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मैं राममय हूँ ...

13 सितम्बर 2024
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मर्यादित हूँ - आनंदित हूँ - भावनात्मक हूँ शरणागत हूँ - निशब्द हूँ - ऊर्जावान हूँ संतुष्ट हूँ - तत्पश्चात -मैं राममय हूँ गुरु शरण में हूँ ......

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शिखर ...

13 सितम्बर 2024
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मेरे सामने पहाड़ है पहाड़ मुझे देख कर झुकता नहीं , मैं ही झुक जाता हूँ आधे कमर तक ताकि पहाड़ मेरे मन के विचारों को पढ़ ना सके और मेरे चेहरे के उस भाव को भी&nbs

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आईना ...

13 सितम्बर 2024
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आईना बड़ा वफादार बड़ा हमदर्द होता है ,,आईना अतीत भविष्य नहीं दिखाता है ..आईना केवल वर्तमान दिखाता है ..और व्यक्ति को आनंदित , हर्षित कर देता है ..यदि आईना अतीत भविष्य दिखा सकता&nbsp

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निष्पक्ष गुफ्तगू ...

13 सितम्बर 2024
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कभी आईने के सामने बैठ कर , खुद से गुफ्तगू की है ..संसार की सब से खूबसूरत और निष्पक्ष गुफ्तगू होगी ... ..

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अनमोल हो जाता हूँ --

14 सितम्बर 2024
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मैं अलग हूँ पर ग़लत नहीं ,,मैं साधारण हूँ लेकिन तेरा हूँ ,,मेरी हस्ती की कोई बिसात नहीं ,,पर तुझ में जब मिल जाता हूँ अनमोल हो जाता हूँ .....

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एक रोटी की ललक -

14 सितम्बर 2024
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माँ चूल्हे पे रोटी नहीं पका सकी ,, बेटी भूख से तिलमिलाती स्कूल से आयी रसोई में बर्तन खाली पड़े थे बेटी छोटी थी स्कूल में रोटी नहीं थी उसे भूख बर्दाश्त नहीं थी मा

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प्रेम की निर्मलता ..

14 सितम्बर 2024
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वफ़ा - निष्ठां - एतबार की ठोस मिट्टी से बना पर्वत , और इठलाती बलखाती नदी बह चली - दोनों ने कभी एक दूसरे से शिकायत नहीं की - बंधन में नह

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भावना नदी ...

15 सितम्बर 2024
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पृथ्वी पर असंख्य नदियां दरिया समंदर हैं गंगा है कावेरी है युमना है रावी है सिंधु है नील है फुरात है परन्तु ये दरिया ये नदियां ना डुबोती हैं ना मारती हैं ना ये ख़ौफ़नाक हैं

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मेरी रचना की अभिव्यक्ति ..

21 सितम्बर 2024
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जब मैं कविता लिखूं और तेरी सुंदर छवि को शब्दों में रूपांतरण करूँ ,तब तुम कागज़ के दोनों छोर थाम लेना ...क्यों की मैं नहीं जानता मेरी रचना की अभिव्यक्ति का फैलाव ...

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पहले स्टेशन पर ..

21 सितम्बर 2024
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तुम इस दुनिया में स्थायी रहने नहीं आये हो ..तुम सिर्फ इस दुनिया से गुज़र रहे हो ..और इस सफर में अगर कोई हमसफ़र मिल जाए ..फिर चाहे वो किसी भी रिश्ते के रूप में मिले ..बंधन में मत बंधन

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